By Sushma Vohra
विश्व में नाना संस्कृतियाँ आई और विलुप्त हो गई । पिरामिडो का निर्माण करने वाली तथा अपने पितरों को 'ममी के रूप में पूज करने वाली मिश्र की संस्कृति अब कहाँ है ? असीरि और वेबीलोनिया की संस्कृतियाँ क्या अब घरा पर है। किन्तु भारतीय संस्कृति अमर बटवृक्ष की तरह वैदिल काल से लेकर आज तक फल-फूल रही है और अपने मंगलकारी रूप में विराजमान है। ऐसी कौन सी विशेषताएं है जिन्होने हमारी संस्कृति को अमरता प्रदान की है। हम, हमारी समाज, हमारे संस्कार सब मिलकर बनाते है हमारी संस्कृति।
आस्तिक भाव
भारतीय ऋषियों ने इस खूबसूरत जगत को जानने की इच्छा के मार्ग में हर शय में अनन्त, समर्थ और सुन्दर विभूतियों के दर्शन किए और समाज में 'सत्यं, शिवम्, सुन्द रूपो में विद्यमान परमसता की अनुभूति की जिसमें सकल अनन्त दृश्य समाया हुआ है और यही भाव भारतीय समाज में विद्यमान विश्वास और क्ष्रद्धा से
समन्वय भाव
भाररीय संस्कृति में समन्वय भाव की प्रधानता है अर्थात भारतीय समाज ने सर्वदा पूरे विश्व को सुखमय बनाने का प्रयास किया है। भोग के साथ योग, भक्ति के साथ ज्ञान, प्रकृति के साथ निवृति का समन्यन हमारे ऋषि-मुनियों के दिए संस्कार है।
अनेकता में एकता
भारत एक विशाल देश है। अनेक जातियों है किन्तु वे सब एक है। रूप अनेक है, प्रांत अनेक है। ऋतुए अनेक है परन्तु फिर भी प्रत्येक प्राकृतिक भाग में यहाँँ अनेकता में एकता के दर्शन होते है। भारतीय समाज और संस्कृति ने समस्त सृष्टि के प्रति उदार दृष्टिकोण रखा और अणु से ले सूर्य तक एक ही रूप अपनाया । भारतीय संस्कृति के उपासकों का हृदय स्यंत विशाल है।
सामजंस्य भावना
सामजंस्य का अर्थ है मिली-जुली संस्कृति । भारतीय समाज की संस्कृति वस्तुतः आर्य संस्कृति ही है परन्तु समयानुसार उपादेय विचारों को अपने अन्दर समाहित कर लिया। युनानी, शक, हूण, मुसलमान और अंग्रैज यहाँ आए । उनके आचार-विचार और प्रतिभा का भी आर्य संस्कृति पर प्रभाव पड़ा।
आत्म तत्व और परमात्म तत्व
भारतीय संस्कृति के मूल में आत्म तत्व और अमर परमात्मा तत्व है। हमारे समाज में यह संस्कृति 'मृत्योर्मा अमृतंगमय' के महान मंत्र का अनुसरन कर रही है और हमे मृत्युन्ज्य का अमर संदेश दे रही है।
प्राचीनता
विश्व संस्कृति के इतिहास में भारतीय संस्कृति अपनी प्राचीनता स्थापित कर चुकी है। इतिहास इस तथ्य को स्वीकार करता है कि भारतीय समाज की संस्कृति ही प्रथम संस्कृति है और ऋग्वेद विश्व साहित्य का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
धर्म-भावना
यह भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारतीय समाज
"हम विविध सत्कर्म करते रहे सौ वर्ष जीते रहे "
जैसे गीतों को अपने भावों में अवतरित करता है। यहाँ सभी कर्म धर्म-भावना से किए जाते है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत इन कार्यों में अग्रसर रहता है। 'वसुधैवकटुम्बकम" आज के युग का उदाहरण है
अन्तत:
भौतिक विज्ञान क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के चिंतको ने संसार को गणित के अंक शून्य का विचार दिया।
विश्व का प्रयाना ग्रंथ ऋग्वेद जो भारती की देन है। पुराण विद्या (Mythology) की उद्गम स्थल भारत ही है।
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की अमर देन है।और यह एक नै वैज्ञानिक भाषा है
संपूर्ण विश्व को योग विद्या काज्ञान दिया
संक्षेप में यद्यपि पश्चिमी सभ्यता और टेक्नालॉजी ने विश्व की अनेक भौतिक सुख सुविधाएं उपलब्ध कराई है तथापि भारतीय समाज ने अपनी संस्कृति के तहत संपूर्ण मानव-जति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है भारतीय मानव , मानव-निर्मित समाज और संस्कृति ने भारत को सर्वोपरि रखा है। हमारी संस्कृति हमारा गौरव है ,मान है।
By Sushma Vohra
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