By Ruchita Iyer
स्त्री,
स्त्री का अर्थ ही मर्यादा का स्वरूप है।
स्त्री शांति की मूरत है,
स्त्री समर्पण का दूसरा नाम है,
स्त्री धैर्य का आदर्श है,
स्त्री प्रेम का खूबसूरत रूप है।
यूंही नहीं स्त्री को इतना मान दिया गया है,
स्त्री बिन संसार नहीं,
स्त्री बिन कोई सार नहीं ।
चाहे वो मां का रूप हो,
जो बेहद पूजनीय और प्रेम से परिपूर्ण होता है,
चाहे वो बहन का रूप हो,
जो निस्वार्थ भाव से भरा होता है,
चाहे वो बेटी का रूप हो,
जो अपने प्यार और दुलार से संसार भर देती है,
चाहे वो प्रेमिका का रूप हो,
जो अपने मोहब्बत के रंग से सब सुंदर कर देती है,
चाहे वो बस एक आम स्त्री हो,
जो अपने मुस्कान से सब रोशन कर देती है।
एक स्त्री देवी का रूप है,
एक स्त्री हर रूप में पूर्ण है ।
स्त्री को आंका नहीं जा सकता,
स्त्री को तोला नहीं जा सकता,
स्त्री को सिर्फ निभाया जा सकता है,
प्रेम से,
सम्मान से,
और भरोसे से।
इसलिए स्त्री हर आत्मा में, हर सांस में, हर आहट में और हर एहसास में संपूर्ण है।
स्त्री आत्मनिर्भर है,
स्त्री प्रभावशाली है,
स्त्री स्वयं एक धर्म है,
प्यार उसकी जाति है,
त्याग उसका उपनाम है,
और दिव्य उसका नाम है ।।
By Ruchita Iyer
Nice