By Nitin Srivastava
बचपन के दिनों में अच्छा समय बीत रहा था। हँसते - खेलते, नहाते - धोते मस्ती करते य ँही। नहाते -
धोते माने नहाते और धोते भाई अब इसमें विशेष क्या ?
कै से का क्या मतलब ? साबुन लगा कर बाल्टी और मग्गे से पानी डाल डाल कर और कैसे ?
कौन सा साबुन ?
बस इसी सिाल ने जीिन में भ चाल ला दिया।
शायि आठिीीं पास करके नौिीींमें पहुींचे थे। बड़े होने का सा एहसास होने लगा था। लड़का और लड़की
होने का क्या मतलब है पता लग रहा था। लड़के हैं तो लड़कों जैसे शौक और बतााि होना चादहए।
समझ रहे हैं ना ?
विद्यालय भी लड़कों का अलग और लड़ककयों का अलग तो जो आस पास के सभी करते थे िही लड़कों
िाला व्यिहार होता होगा यही मान कर अपने को प र्ा लड़का बनाने में सींलग्न हुए पड़े थे।
तो हुआ य ँकक एक दिन बात चल पड़ी नहाने की, लोग अपने तरह तरह के अनुभि साझा करने लगे।
हमने भी बढ़ा चढ़ा के बताने में कोई कसर थोड़ी छोड़ रखी थी।
हम बखान करते गए , "हमारे गुसलखाने में तो तीन तीन बाल्टी हैंएक में रॉड लगा कर पानी गमा
करते हैं, एक में ठींडा भर लेते हैं और तीसरे में ममला ममला कर नहाने का आनींि लेते हैं। "
प रा रईसी लहजे में रोब झाड़ दिए।
ककसी ने पुछा , "क्या लगा कर नहाते हो ? ममट्टी या साबुन ?"
हम भी गरमा गए , "अबे साबुन से नहाते हैंऔर काहे से नहाएींगे ? "
अगला सिाल िागा गया , "कौन से साबुन से ?"
ये िाला सच में गींभीर था। ये तो कभी ध्यान ही नहीीं दिए जो भी सामने दिख गया उसी से नहा मलए।
अब साबुन में क्या विशषे ।
"कोई सा भी हो ? जो घर में आता है उसी से नहाते हैं। लक्स िक्स जैसा। अब ररन और ननरमा से तो
नहाएींगे नहीीं। " गुस्सा सा आने लगा था फींसते हुए महस स हो रहा था।
सब लड़के हो हो करने हींसने लगे , "ये िेखो गुरु लौंडडया िाले साबुन से नहाता हैअपना बऊआ। "
गुस्सा अब चरम सीमा पे पहुँच रहा था ,"इसमें हींसने िाली क्या बात हैतमु कोई वििेशी साबुन से
नहाते हो क्या ?"
िािा टाइप धमेन्द्र बोला , "मिों िाले साबुन से नहाते हैं"लाइफबॉय" । ये लक्स िक्स लेडीज़ लोगों के
मलए होता है। माल म नहीीं क्या ?"
"माल म हैमाल म है। लेककन ये अच्छा होता हैइसमलए सब लोग इसी से नहाते हैं, अलग अलग साबुन
थोड़े ही लेंगे। " सफाई िेने की नाकाम कोमशश की।
सबने हँसते हुए सभा बखाास्त कर िी। कुछ ही िेर में टीचर के आ जाने से िैसे भी सन्द्नाटा हो गया
लेककन हम मन ही मन कुढ़ते रहे।
घर पर कई दिन बगाित करने के विचार मन में आते रहे लेककन वपताजी की तनी हुई भौंहें िेख कर
दहम्मत जिाब िे जा रही थी।
कफर क टनीनत से काम लेने की तैयारी की और सबसे पहले छोटे को अपने तरफ ममलाया जजससे बहुमत
हो जाये।
"तुम्हें पता हैलड़के लोग "लाइफबॉय" से नहाते हैंये जो हमारे यहाीं आता हैन लक्स या जो भी ये तो
लेडीज़ का साबुन होता है। पता नहीीं पापा भी कैसे इसी से नहा लेते हैं?" हमने उसके कान भरे।
"हाँभैया हमने िेखा था दिग्गुभैया के कमरे में रखा था िो "लाइफबॉय", लाल लाल होता है मोटा सा।
उसी से नहाते हैं और हाथ िाथ भी उसी से धोते हैं। " उसने भी अपना ज्ञान बघारा ।
"अच्छा ? बहुत बदढ़या। चलो हम लोग भी यही मँगिाते हैं। एक बार तुम पापा को बोलना , हम भी
कहेंगे। " हमने अपना िाींि चला।
"नहीीं नहीीं , पापा से बात नहीीं करेंगे। तुम कहो, हम हाँ में हाँ ममला िेंगे। " उसने तो सहयोग से सीधा
मना ही कर दिया।
"चलो पहले मम्मी से बात करते हैं। " हमने प्लान बी पर अमल करने की सोची।
िोनों भाई माँके पास पहुींच।े िो अपनी साड़ी में फॉल लगाने में व्यस्त थीीं। हमने कुछ िेर उनके खाली
होने का इन्द्तजार ककया कफर अपनी बात शुरू कर िी।
"मम्मी पता हैआज कल लड़को और लड़ककयों के साबुन अलग अलग आने लगे हैं? " मैंने आधार
बनाना शुरू ककया।
"अच्छा ?" मम्मी ने हमारी तरफ िेखे बबना ही कहा।
"हाँहमने दिग्गुभैया के यहाीं िेखा था , िो लाइफबॉय नाम का एक साबुन लगाते हैंऔर हमारे कुछ
िोस्त भी यही इस्तेमाल करते हैं। " छोटे ने समथान ककया।
"ये तुम दिग्गुसे जरा िर रहा करो िो बहुत बिमाश हैतुम लोगों को भी बबगाड़ िेगा। " मम्मी ने सारे
ककये पर पानी फे र दिया।
"ये लो ये तो उल्टा ही हो गया, छोटे को भी समझ में नहीीं आता। बेकार में दिग्गुभैया का नाम लेकर
मामला बबगाड़ दिया। " मन ही मन हम बुिबुिाए।
"अरे आप दिग्गुभैया को छोड़ो लेककन आप पापा से कहो कक लाइफबॉय ही लाया करें जजससे हम िोनों
भाई और पापा नहाएँगे। " मनैं े बात सँभालने की कोमशश की।
"ठीक है हम बात कर लेंगे। " माँ ने कह कर जान छुड़ा ली।
िो तीन दिन बीत गए लेककन माँकी तरफ से कोई कायिा ाही नहीीं हुई तो हमने ही बबल्ली के गले में
घींटी बाींधने का ननर्ाय ककया।
रात में खाना खाते खाते जब पापा में मँुह में कौर भरा था तभी सही मौका िेख कर हम फ ट पड़, "े पापा
हम ये कह रहे थे कक हम लोग सभी एक ही साबुन से नहाते हैंजो ठीक नहीीं लगता। तो सोच रहे हैं
कक अलग अलग हो तो सही रहेगा। "
पापा ने मँुह में जो था उसे ख़तम ककया और बाएीं हाथ में गगलास उठाकर पानी का घ ँट मलया , पानी
गटकने के बाि घ र कर िेखा , "लाटरी लगी है ? धन्द्ना सेठ हो गए हो ? घर में पाींच लोगों के मलए पाींच
साबुन आएगा?"
पापा की आिाज से हमारे हाथ से प्लेट छ टते छ टते बची , "नहीीं नहीीं बस िो ही तरह का साबुन चादहए
होगा। एक िो लेडीज़ िाला मम्मी और बुआ के मलए और एक आपके और हम िोनों के मलए। "
छोटे ने पीछे से पदहया जोड़ा , "हाँिो हम लाइफबॉय का विज्ञापन िेखे थे िहाँझन्द्न की िकु ान पर।
मिों का साबुन होता हैिो बहुत बदढ़या बॉडी बनती हैफोटो में िेखा था। "
पापा नतरछी आँख से उसे िेख कर बोले , "अच्छा तो अब साबुन भी औरत और मिा िाला होने लगा।
कौन मसखाता हैतुम लोगों को ये सब खरुाफात ? पढ़ाई मलखाई में मन तो लगता नहीीं बस झन्द्न की
िकु ान का चक्कर लगातेरहो लोफरों की तरह।"
और उसके बाि खाना ख़तम करके थाली में हाथ धोया और उठ कर चल दिए इतना जोखखम लेकर
हमने जो शुरू ककया उसका पररर्ाम तो पता ही नहीीं चला पापा तो बात को अधर में ही छोड़ कर चल
दिए।
लेककन इससे ये एक सुखि शींका रह गयी की अगर हाँनहीीं कहे हैंतो नहीीं भी नहीीं कह के गए मतलब
कुछ तो सींभािना है।
हफ्ता बीत गया लेककन कोई हलचल नहीीं हुई हमारे साबुन की दिशा में जजससे गचतीं ा बढ़ती जा रही थी
उधर विद्यालय में भी मँुह छुपाये घ मना पड़ रहा था कक कहीीं कोई प छ ही न बैठे।
खरै उम्मीि के ककरर् जागी जब मम्मी ने घर के सामान की स ची बनाई। स ची में िो नहाने का साबुन
भी मौज ि था , मैंने धीरे से मम्मी से कहा , "ये िो में से एक अपना लक्स कर लीजजये और एक हमारा
लाइफबॉय हो जायेगा। "
मम्मी ने घ र के िेखा कफर बोलीीं ,"हमें क्या है हम तो मलखे िेते हैं लेककन पापा कोई नाम िेख कर
सामान थोड़े न खरीिते हैं िो तो नहाने का साबुन ही माींगेंगे और हमें भी नहीीं पता कक कौन सा
आएगा।"
पापा से मसफाररश करके सामान लेने साथ जाने का जुगाड़ तो हो गया अब िेखना था कक सफलता
ममलती है या नहीीं।
िकु ान पर सामान माींगते हुए पापा ने िो साबुन बोले और हमने पीछे से जोड़ा , "भज्जा भैया एक लक्स
और एक लाइफबॉय। "
भज्जा भैया ने हमारी ओर िेख कर ऐसेआँखें चलाई मानो हमने आकाश में दिखते ककसी तारे का नाम
पहचान के बता दिया हो।
तो सींघषा सफल रहा और हम भी लाइफबॉय धारी हो गए।
अगले दिन सीना चौड़ा करके विद्यालय में घ म रहे थे लेककन उस दिन तो क्या आगे कभी भी ककसी ने
साबुन के बारे में बात ही नहीीं की।
खैर हमको क्या ? हमने अपनी मींजजल तो हामसल कर ही ली थी।
बात अगर यहीीं ख़तम हो जाती तो बेहतर था लेककन ये बात एक बार कफर उठी और इस बार ये कोई
माम ली त फान नहीीं बजल्क एक साथ कई ज्िालामुखी फट पड़े हम पर।
चमलए ये भी बता ही िेते हैं।
हुआ य ँकक बहुत रगड़ नघस करके हमने इींजीननयररगीं कॉलेज में िाखखला ले मलया। पहली बार नर और
मािा एक साथ एक ही कक्षा में अगल बगल बैठे दिखे तो हम कुछ दिन थोड़ा असहज रहे।
असली मसला तो तब हुआ जब एक बार कफर नहाने को लेकर बात शुरू हुई और हम तो सुन कर
बेहोश होते होते बचे।
अब तक तो हम पुरुष और मदहला साबुन की जद्िो जहि में थे यहाँतो मँुह धोने का साबुन अलग ,
शरीर पर लगाने का साबुन अलग, और न जाने कैसे कैसे विगचत्र साबुन के प्रकार। हर साबुन अलग
प्रकिया के मलए।
और इसी िौरान हमें पता चला कक बाल धोने के मलए साबुन नहीीं इस्तेमाल करते ....... बताइये क्या
विगचत्र िनुनया हैये।
इनत।
नननतन श्रीिास्ति
By Nitin Srivastava
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