By Jai Kishor Mandal
माता-पिता अब इतने बोझ हो गए,
कि उनको हम वृद्ध आश्रम छोड़ आए।
जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर,
दूर उनको हम अपने से क्यों भेज आए।
सोचो अगर वो भी करते यही हमारे साथ,
शायद हम भी नहीं होते इस संसार में आज।
वृद्ध आश्रम का यह concept बहुत गंदा है,
खुला जहाँ भी वृद्ध आश्रम है बंद होना चाहिए आज।
इस पड़ाव पर आकर माता-पिता हो जाते है बच्चे,
इस संसार में कोई और नहीं बस माता-पिता है सच्चे।
ज़िन्दगी की चमक-धमक में हम सब कुछ भूल गए,
रिश्ते सब खराब कर माता-पिता को दूर कर दिए।
जिस माता-पिता के छाये में हम पले बढ़े,
आज हम उनको अपने ही छाये से दूर कर दिए।
ये कैसा समय आया है इंसान क्या सोचता है,
माता-पिता को दूर करके खुश हो जाते है।
बुढापा आया तो माता-पिता अब बोझ हो गए,
भरी इस जवानी में माता-पिता का भार उठा न सकें।
माँ की ही ममता थी जो कभी-कभी भूखे सो जाती थी,
आज समय ऐसा आया है कि उनको अपने पास रख न सकें।
माता-पिता एक समय आने पर बच्चों की तरह हो जाते हैं,
परेशान हो कर अक्सर लोग इनको वृद्ध आश्रम भेज देते हैं,
यह फैसला कितना उचित हैं उनको इस पर सोचना चाहिए,
परेशान होकर उनसे लोग वृद्ध आश्रम खोजने लग जाते हैं।
अक्सर ये किस्सा अमीर परिवारों में बहुत होता हैं,
पढ़े लिखे इंसानों से ये गलती जानबूझ कर क्यों हो जाता हैं।
वृद्ध आश्रम वो भेजते हैं माता -पिता को जो अमीर होते हैं,
जीवन के इस दिखावे के चक्कर में माता-पिता से दूर जातें हैं।
वृद्ध आश्रम जाकर वो क्या सोचते होंगे,
जिसको पाला उसी ने घर से निकाला ऐसा वो कहते होंगे।
कर भी क्या सकते हैं हम इस मोड़ पर ऐसा वो बात करते होंगे,
वृद्ध आश्रम के किसी कोने में बैठ वो रो लेते होंगे।
इस बुढ़ापे में सहारा जब अपना संतान नहीं बन पाया,
बेटा और बहु ने चाहा तभी तो आज ये सब हो पाया।
जीवन के इस मोड़ पर न चाहते हुए वृद्ध आश्रम आना पड़ा,
काट लेंगे ज़िन्दगी आखरी अपनी इसी आश्रम में और क्या हो गया।
By Jai Kishor Mandal
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