By Kushagra Singh
नभ पर चमकी तलवारों सा फूट पडे जो अंगारो सा
सौ सौ मृग पर एक सिंह सा
टूट पडे जो जन सारो सा
काल रात्री के मध्य खड़ा जो
चंद्रकला सी चाल चलेगा
काल विजेता महाप्रलय मृत्युंजय वो
महाकाल सा विक्रल बनेगा
रक्त तलैया मे खड़ा अकेला स्वयं
सैन्य दल बन जाएगा
बंध सके जो कुसुम मौत पर
सब जन से बड़ा खड़ा वो हृदय सिंह का दिखलाएगा
चिनगारी सा खड़ा स्वयं मे
वो जल मे आग लगा जाएगा
काल रात्रि के मध्य खड़ा वो
चंडी सी मस्तानी बन जाएगा
सकुशल क्षत्रिय बना खड़ा वो
धर्म के लिए यम से भी लड जाएगा
जो न्याय के लिए नारायण से भिड़ जाएगा
कट जाएगा मिट जाएगा छित जाएगा
रक्त बगित हो शौर्य मिटा देगा
आन लुटा देगा जान लुटा देगा
समक्ष खड़ा जिस शत्रु के उसकी पहचान मिटा देगा
सिखा सके धर्म युद्ध उसे तो
ऐसा कोई शास्त्र नहीं है
छू कर निकला बदन को उसके
लज्जित गिरा पड़ा ब्रह्मास्त्र वही है
कट जाए जिसका शीश वही तो
धड भी लाडने आ जाएगा
देवो की सेना से मल्लयुद्ध करे जो
हाँ इंद्र देव से आंख मिला लेगा
जो शीत लहर को ताप तचा जाएगा
पार करेगा इस धरती को
पार करेगा उस धरती को
वो त्रिलोक विजया बन जाएगा
हो चाहें सेना दैत्य राज की
अंगद सा पैर लिए नर हिमगिरि सा अड जाएगा
त्रिलोक विजेता बनकर भी जो
अभिमान गिरा जाएगा
हृदय मे बसेंगे राम उसी के
वह रावन की लंका पुनः दहन कर जाएगा
Yयुद्धभूमि मे पराजित पक्ष से लडकर विजय मंत्र को पढ़कर
शत्रु का काल बने जो
रण मे हाहाकार मचा जाएगा
कृष्ण का अंश लिए जन्मा नर
इस धर्मभूमि के खंड खंड को
धर्म धान्य कर जाएगा
मृत्युलोक मे जन्म लिए नर निराकार बन जाएगा
काल विजेता महाप्रलय मृत्युंजय वो
वीर पुरुष कहलायेगा
By Kushagra Singh
Would be waiting for more such writings sir ;)
These writings truly inspired me 👍
Deeply appreciated
Inspiring 🔥
👐