By Trijal Agarwal
दो पंछी अलबेले डाली पर बैठ गुफ़्तगू करते,
तमन्नाएँ करते बार-बार,
साथ बैठकर हो जाते गुलाबी उनके ये रुख़सार,
कभी एक-दूजे की सरगोशियों से खिल उठते ये रुख़सार,
तो कभी मसखरी में सादगी से हिल उठते ये रुख़सार।
एक दूजे के इल्हम हैं ये रुख़सार,
फ़ासले के दण्ड से भीगे हैं ये रुख़सार,
कश्मकशों के झरनों से अक्सर सींचे हैं ये रुख़सार,
फिर भी तमन्ना है,
उम्र का फ़ासला साथ तय करेंगें ये रुख़सार,
वय की सिलवटों से साथ खेलेंगे ये रुख़सार।
सिलवटें अब खोएंगी नहीं,
शांत होंगीं और साथ-साथ शांत हो जाएंगे
ये रुख़सार,
दो पंछी अलबेले डाली पर बैठ तमन्नाएँ करते,
कुछ मुकम्मल हुईं तो कुछ हैं बाकी,
लेकिन गुलाबी तो अभी भी हैं ये रुख़सार।
By Trijal Agarwal
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