By Nidhi
हम सभी समाज में बहुत गर्व के साथ रहते हैं और हमारा मानना होता है कि समाज भी सभी लोगो को सम्मान दें चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या व्यवसाय का हो। पर, क्या सच में ऐसा समाज करता है। क्या हम लोग जिन्हें खुद का सम्मान चाहिए हम प्रत्येक इंसान का सम्मान करते है? मैं बात कर करही हूँ LGBTQIA+ समुदाय कि। आपने जरूर कभी ना कभी इस समुदाय के बारे में सुना ही होगा। इसके अलग-अलग अक्षर इस समुदाय के अलग अलग समूह को दर्शाते है। जैसे :- ● L (लेस्बियन) : ऐसी स्त्री जो दूसरी स्त्री से शारीरिक तौर पर आकर्षित हो। ●G(गे) ऐसा पुरुष जो दूसरे पुरुष की ओर शारीरिक तौर पर आकर्षित हो। ●B (बाइसेक्सुल): ऐसी स्त्री या पुरुष जो दोनो ही लिंग से शारीरिक तौर पर आकर्षित हो। ●T (ट्रांसजेंडर) एक ऐसा व्यक्ति जिसका शरीर एक सामन्य पुरुष या स्त्री जैसा दिखने में होगा परंतु वे जानते हैं कि उनकी लिंग की पहचान अलग है। ●Q(क्वीर/ क्वेस्चनिंग) ऐसे लोग जो ना अपनी पहचान तय कर पाए और ना ही शारीरिक चाहत, ये अपने आपको गे, लेस्बियन ,ट्रांसजेंडर या बाइसेक्सुल नहीं मानते। अपनी ही पहचान पर सवाल करते है। ●I (इंटक्सेक्स): ऐसे लोग जिनके जननांग व गुणसूत्र सामान्य महिला व पुरुष जैसे नहीं होते है। इनके जननांग इसके प्रजनन अंग से मेल नहीं खाते। ●A (एसेक्सयुअल) : ऐसा व्यक्ति जो किसी भी लिंग के व्यक्ति से शारीरिक रूप से आकर्षित नहीं होता। ● + : ऐसे ही और समूह
भारत में इसी समुदाय में एक हिजडा समूह भी है जो ना तो पूर्ण पुरुष है और ना ही पूर्ण स्त्री है। आप कह सकते हो कि एक ऐसा पुरुष जो महिलाओं की तरह व्यवहार करे। इनके नाम और परिभाषा से पता चल रहा है कि ये सामान्य पुरुष व महिला से अलग है पर गलत नहीं। और हमे उनके लिए एक अलग समूदाय बनाने की जरूरत पड़ी ,पर क्यों ? क्या वो सामान्य लोगों कि तरह एक ही समूदाय में नहीं रह सकते ? मैं LGBTQIA+ का अलग समूदाय बनाने के खिलाफ नहीं हूँ परंतु ये समझना भी जरूरी है समाज को, कि समूदाय अलग कर दिया ठीक है किंतु ये समाज का ही हिस्सा है । क्यो उनके लिए अलग बस्ती है? क्यों वो झोपड़ पट्टी में रहते है? क्यों साथ में उसी जगह नहीं रहते जहाँ हमारे मकान है? हाँ आप लोग कह सकते हो कि किसी ने उन्हे रोका तो नही वहाँ साथ रहने से, कह सकते हो कि उनकी इच्छा होती है समाज से खुद ही थोडा दूर रहने की । पर क्या कभी उनसे जानने कि इच्छा कि किसी ने कि क्यो उन्हें हमारे साथ रहना नही पसंद हैं? क्यों वो लोग अपने समुदाय के लोगों के साथ रहते है समाज से हट कर? इन सभी सवालो का जवाब बस एक है हमारी सोच हमने उन्हें हमेशा से एक ऐसी नजर से देखा कि उन्हें ये समरण होता रहे कि वो अलग है और बल्कि गलत है । उनके साथ दोस्ती नातेदारी निभाना गलत है ,साथ बैठना गलत हैं, चाय पिलाना गलत है। उन्हें देखते ही हमारा गाडी का शीशा ऊपर कर लेना । उन्हें देखते ही पर्स से चिल्लर निकालना ये कैसे समृद्ध देश के लोगों की सोच है?
जिस प्रकार हम उन लोगों को धिक्कारते है मानो जैसे उनका जन्म लेना ही उनकी सबसे बड़ी गलती हो। हम ऐसा व्यवहार ना जाने क्यों करते हैं जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाये। हम बहुत बार ऐसे शब्द बोल देते है जिसको बोलकर हम भूल जाये परंतु उनके दिल में एक गहरी चोट पड जाती हैं। यहां तक तो चलो सहन किया जाता उनसे परंतु उनका सोसाइटी में आना जाना बंद करवा देना उनसे सीधे मुंह बात ना करना और कुछ दुराचारी तो ऐसे बात करते हैं मानो वो खुद श्रेष्ठ श्रेणी के हैं और ये उनके दास उनसे जैसे मर्जी बात करें जहां मर्जी वहाँ छुए ,उनका शोषण करें या फिर धक्के मार कर समाज से बाहर निकाल दें। वो व्यक्ति जो पहले से उस ईश्वर से खफा है, कि उसकी पहचान वो नहीं जिससे वो प्रसन्न हो, उन्हें हम और ज्यादा नीचा महसूस करवाते हैं। क्या समाज एक ही तरह के लोगों से बनता हैं, क्या समाज की खूबसूरती सभी समुदायों को साथ लेकर और सम्मान देकर आगे बढ़ने में नहीं हैं।
मुझे नहीं पता कि एक सही परिभाषा समाज की क्या है, परंतु इतना जरूर समझ सकती हूं कि किसी एक समुदाय के साथ ऐसा दुर्व्यवहार तो एक सभ्य समाज की संस्कृति में नहीं होगा। LGBTQIA + कम्यूनिटी को उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा।अब जागरूकता बढ़ रही है इसलिए इनके कुछ अलग-अलग अधिकार दिए गए है सरकार के द्वारा, पर बस अधिकार को कागज पर उतार देने से उन्हें अधिकार का फायदा नही मिलेगा। हम सभी को उनको ये महसूस कराना होगा कि वो पूरे सम्मान और अधिकारों के साथ समाज में रह सकते है वो भी गर्व से, बिना किसी प्रतिबंध के और बिना किसी शोषण के । हालाँकि इतनी जल्दी कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा, पर कुछ लोगो के सहयोग से समाज की सोच कुछ समय में बदल जाएगी। और वो हमारे साथ हमारी सोसाइटी में सभी पर्व मनाऐंगे। पुरानी पीढ़ी इस बात को शायद देरी से समझे पर आशा है कि वर्तमान पीढ़ी व आने वाली पीढ़ी इसमे समर्थन करेगी।
LGBTQIA+ कम्यूनिटी के एक सदस्य की पुकार :-
" हम भी उस रचयिता का अंश है, हमसे आशीर्वाद की कामना करते हो और हमे सताने के बाद हमारे हृदय की बद्दुआ का क्या? हमे भी अपनाओ और हमारे परिवार को भी समाज मे सर उठा कर चलने दो। कई बार समाज के तानो के चलते हम बचपन मे ही अपने परिवार से दूर हो जाते हैं क्योंकि परिवार वालों को शर्म आती हैं, तानों की वजह से परेशान होते हैं । हम भी समान सम्मान के हकदार है।"
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
By Nidhi
Comments