By Atulyaa Vidushi
एक पन्ने पर लिखू तो क्या बताउ अपनी बात ,
कहा एक पल में समझ पाउ मैं ;
सुने मेरा दिल पहले मेरी,
तब तो किसी और को समझने लायक पऊ मैं !
दिल उड़ना चाहे तो दिमाग ऊंचाई से डर जाता है ,
ऐसे में कहा से अपने कंधो पर ये पंख लगा पाऊं मैं ;
हमेंशा उड़ना है यूं रुकना नहीं है
एक-एक पल के मोहताज़ को चुकना नहीं है ,
कागज की कश्ती से शुरू करके जीतेंगे जरूर
लेकिन ये होशला अपने आप को कैसे दे पाऊं मैं ,
मेरा आत्मा नाराज है मुझसे
कुछ रूठी है मेरे अंदाज़ से ,
इसे पहले की तरह कैसे हसाऊं ;
सुने मेरा दिल पहले मेरी
तब तो किसी और को समझने लायक पऊ मैं ।
कोशिश रोकती नहीं कभी मैं ,
शायद नाकाम फिर भी हु अभी ,
लेकिन परिंदा हूं मैं भी
क्या इतनी आसानी से हार जाऊं मैं ;
उम्मीदें रखी है मेरे दिल ने मुझसे
कि डर के भी उड़ जाऊंगी मैं,
क्या अपने दिल के लिए एक बार पंख भी ना फैलाऊं मैं ?
अभी तो शुरू किया है मैंने
अपने आप को खुद से मिलाना है ,
क्यों ना थोड़ा जितने के लिए खुद पे हार जाऊं मैं ;
एक पन्ने पर लिखू तो क्या बताउ अपनी बात
कहा एक पल में समझ पाउ मैं ,
सुने मेरा दिल पहले मेरी
तब तो किसी और को समझने लायक पऊ मैं ।।
By Atulyaa Vidushi
Comments