By Surjeet Prajapati
मजदूर हूँ मैं,
खींचता जा रहा हूँ,
मैं गमों की देलियों को,
खुशियों से दूर हूँ मैं,
मजदूर हूँ मैं।
मैंने शहरों को टिका रखा है,
अपने मेरूदण्ड पर,
हर इमारत के बाहरी हिस्से में,
अंदरूनी में जो चमक है,
वो मेरे ही श्रम की है,
नींव में भी मैंने,
खुद को दबाया है,
और सुन्दर, सुद्रढ़ बनाया है,
अतैव, मेरी उसमें लगी मेहनत को,
कोई बयां नहीं करता कभी,
उस घर, इमारत में लगी,
पहली ईंट हूँ मैं,
मजदूर हूँ मैं।
अपने-अपने देश की फैक्ट्रियों में लगा हूँ,
सालों-साल को,
छोटे से छोटे और बड़े से बड़े हर काम को,
मैं ही मचा हूँ,
मैं अपने - अपने देश की समृद्धि को,
सर्वश्रेष्ठ श्रम दे रहा हूँ,
मैं फिर भी न ले रहा हूँ,
कोई आभार!
ये दुनियां जानती है,
कि मैं ही हूँ,
इन तथागत राष्ट्रों के,
उन्नति का आधार,
इनका आयात-निर्यात,
इनका विश्व व्यापार,
इनके इतनी ऊंचाइयों के छू लेने में,
प्रमुख ही तो हूँ मैं,
मजदूर हूँ मैं।
कोयले की खान से कोयला निकालूं,
हीरा,
सोने की खदानों से सोना,
और धरती के ही गर्भ से,
ताँबा, लोहा, जस्ता, अयस्क, सीसा, निकालता हूँ,
ये सभी, राष्ट्रों को समृद्ध करते हैं,
विकसित बनाते है, पर मैं,
इनको निकालने वाला,
मजदूर ही हूँ,
मजदूर हूँ मैं।
हमें क्या?
हम इतने में ही खुश हैं,
राष्ट्र हो जाए समृद्ध,
हम इतने में ही खुश है,
हमें कोई न गम है,
न है हमारी कोई आकांक्षाएँ, इच्छाएँ,
दो जून की रोटी, ही तो हमें चाहिए है,
मिल जा रही है,
और मिल न रही हो,
तो भी तो कोई है नहीं गम,
राष्ट्र ही को समृद्ध करना है मुझे,
राष्ट्र हित में ये भी सही,
वो भी सही,
साथ में ले जाता नहीं कोई, कभी कुछ,
और यहीं छोंड़ जाना है मुझे भी,
तो अभी जो पचास- जी जाता हूँ मैं,
ज्यादा प्राप्त कर लूँ तो बीस और सही,
अस्सी बरस हो जाएंगे जीवन के ये दिन सही,
पर क्या ले जाएंगे साथ में,
सभी का रखा यहीं,
मेरा भी सही,
मजदूर हूँ मैं,
मजदूर ही सही,
मजदूर हूँ मैं।।
By Surjeet Prajapati
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