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बड़े घर की चुहिया

By Anshuman Thakur



नीले रंग की आँखों वाली,

बड़े घर की चुहिया ।


नित सवेरे गटर से निकलकर, 

बड़े घर में घुस जाती है।

फिर जाकर पूजा वाले कमरे में, ऊपरवाले को याद करने में लग जाती है।


फिर आराम से बैठ विधाता के पैरों के पास,

बासी प्रसाद कुतर जाती है।

खुराफात सूझे तो घी के दिये से,

शुद्ध घी का पोषण पाती है, 

नीले रंग की आँखों बाली, 

बड़े घर की चुहिया।


फिर बैठ एक अज्ञात कोने में,

बड़े घर के कार्यक्रम देखती है।

जहाँ सुबह बारह बजे के उजाले में, रात के साढ़े तीन बजे वाली नींद खुलती है।


जब आते हैं मेहमान कभी,

तो अप्रतिम प्रेम की नदियाँ बहती हैं। और जब प्रस्थान करते अतिथि तभी, शीत यु‌द्ध सी सर्दियाँ रहती हैं।


हॉल की शोभा बढ़ाने वाला,

डाइनिंग टेबल चका-चक रहता है, 

क्योंकि, "खाना कमरे में लगा दूँ मालकिन ?"

अकसर नौकर कहता है ! 

इतना मनोरंजन सहने के बाद, 

न खाली पेट रह पाती है। 

पेट में चूहे दौड़ने पर,

किचन की ओर जाती है, 

नीले रंग की आँखों वाली, 

बड़े घर की चुहिया ।


कुतर - कुतर मीठी बुनिया, 

देखती है अचंभित चुहिया । 

घर के बाहर से रोज़ ही, 

घर का खाना आता है।

दरअसल बड़े घर की बहु को, 

खाना बनाना नहीं आता है। 

बेटी महँगी किताबों से,

अपना कमरा सजाती है।

परंतु पाठ्‌यपुस्तक के सवालों पर, इंटरनेट के जवाब दिखाती है।


पति-पत्नी अपने दुखरे, 

एक दूसरे को नहीं सुनाते ।

बंद कमरों वाले झगड़े, 

चहरे की मुस्कान से छिपाते।

यही सब कहते - सुनाते, 

रोज़ शाम चली आती है, 

कभी - कभी थालियों में से

ठंडे पकौड़े खीच लाती है. 

नीले रंग की आँखों वाली, 

बड़े घर की चुहिया ।


कभी - कभी शैतानी कर चुहिया, 

बड़ों के कमरे में चली जाती है।

जाकर वहाँ उस स्वर्ण लंका के, 

गुप्त भेद वह पाती है।


बहाँ बैठे बड़े - आदरनिय, 

रिश्तों में जहर मिलाते हैं।

परंतु सब कुछ कुतरती आफत को, जहर देना भूल जाते हैं।

बड़े-छोटों की लड़ाई में, 

शब्द बाण चलाए जाते हैं। 

शरीर ज्यों के त्यों रहते हैं, 

केठल हृदय मूर्छित हो जाते हैं।


लेकिन फिर भोली-भाली को,

घर की याद सताती है।

रोज़ रात आठ बजते ही, 

वापस गटर लौट जाती है।

नीले रंग की आँखों वाली, 

बड़े घर की चुहिया ।


By Anshuman Thakur




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