By Nitin Srivastava
इस दीपावली पर लगभग पाांच साल के बाद हम सब भाई बहन इकठ्ठा हो रहे थे। पाांच साल पहले तक
पूरा पररवार मतलब पापा-मम्मी, मैं, भैया, शोभा दीदी और अजां ूएक साथ दीपावली की पूजा करते थे
और साथ में त्यौहार का पूरा आनांद उठाते थे ।
लेककन पपछले दो तीन बार से कोई न कोई दीपावली पर अनुपस्थथत होता था स्जसकी वजह हमारे
अलग अलग शहरों में होना था।
मैंगुड़गाांव में नौकरी कर रहा था, भैया भाभी बैंगलोर में बस गए , शोभा दीदी जयपुर में नौकरी कर रही
थी और अजां ूददल्ली में हॉथटल में रह कर पढ़ रही थी।
हम में से कोई न कोई अपने व्यावसाययक या व्यस्ततगत कारणों से त्यौहार में घर नहीां पहुुँच पाते थे।
इसललए इस बार सामने पहले ही तय कर ललया था कक चाहे कुछ भी हो त्यौहार में साथ रहेंगे। भयै ा
को घर आये तीन साल हो गए थे और मैं भी पपछले दो साल नहीां जा पाया।
मम्मी ने बताया था कक घर में बहुत सा बदलाव हो गया हैतयूांकक घर पुराना होने की वजह से उसमें
टूट फूट के साथ साथ सीलन और गांदगी भी हो गयी थी। बाररश खत्म होते ही पापा ने काम लगवा ददया
स्जससे हमारे आने से पहले ही सब ठीक ठाक हो जाये।
मैंधनतेरस को घर पहुुँचा रेलवे थटेशन से ररतशा लेकर मैंघर की ओर चलता जा रहा था। राथता तो
सैकड़ों बार देखा हुआ था इसललए एक एक इांच यादों में बसा था। लेककन दो सालों में बहुत कुछ बदल
गया था।
रेलवे थटेशन से आगे बढ़ते ही जो छोटा सा चौराहा था अब वो बड़े गोल चतकर में बदल गया था।
थोड़ा आगे ही नया मॉल बना था जो हमारे छोटे से शहर के मुताबबक बहुत बड़ा और शानदार था।
सड़कों चौड़ीकरण और नवीनीकरण का काम भी हुआ ददखता था। सड़कों के बीच फूलों वाले पेड़ लगा
ददए गए थे।
कुछ नयी दकु ाने ददख रही थीां तो कुछ दकु ाने पहले से ज्यादा बड़ी हो गयी थीां।
बहुत कुछ बदल गया था जो अच्छा भी लग रहा था बबलकुल हमारी तरह जैसे पपछले कुछ सालों में
हम हवाई चप्पल और बड़ी सी कमीज पहन कर साईककल पर चलने वाले लड़के से चथुत कपड़ों में
महांगी मोटरसाइककल पर चलने वाले वयथक में बदल गए।
वो कहते हैंन बदलाव तो प्रकृयत का यनयम हैइससे ही तो प्रगयत और पवकास का पता चलता है
इसललए बदलाव तो होते रहना चादहए।
खरै गली के नुतकड़ पर पहुांचा तो शम्भूकाका की पान की गुमटी भी दकु ान में बदल गयी थी।
मन ही मन अपने शहर की प्रगयत पर गौरवास्ववत होता मुथकुराता मैंघर के सामने पहुांचा।
ररतशेवाले को पैसे देकर मैं बाहर के लोहे वाले दरवाजे को धतका देने लगा पर वो तो दहल ही नहीां रहा
था। तभी शोभा दीदी आयी वो शायद मुझसे पहले घर पहुुँच गयी थी।
शोभा दीदी ने धीरे से दरवाजे को एक तरफ सरका ददया और हुँसते हए मझु े अदां र आने को कहा।
"ये तया गेट बदल गया ?" मैं आश्चययचककत सा बोला। सालों से मैं इस दरवाजे को वैसा ही देखता आ
रहा था इसललए अचानक इस बदलाव ने अचांलभत कर ददया।
"हाुँ हाुँ , बदल गया मैंभी पहली बार चकरा गयी थी। अभी तो बहुत सारी चीजें हैंजो बदल गयी हैं।
चलो मैंददखाती हूुँ, हर कदम पे नया अचम्भा लमलेगा। " कह कर शोभा दीदी जोर जोर से हांसने
लगी।
आगे बढ़ते ही अगला अचम्भा, घर में घुसने से पहले एक मीनारदार बरामदा था स्जसे तोड़ कर एक
साफ़ सुथरा सीमेंटेड दालान बन गया था।
"इस बरामदे की छत और दीवार बहुत टूट गयी थी इसललए पापा ने इसे पूरा खलु वा कर नए लसरे से
बनवा ददया। अब ये ज्यादा मजबूत और साफ सुथरा हो गया है।" शोभा दीदी उत्सादहत होकर सब बता
रही थी लेककन उसकी बातें मुझे कुछ अच्छी नहीां लगी ऐसा लग रहा था जैसे मैंअपने ही घर में
अजनबी हो गया था।
ऐसा लग रहा था जैसे शोभा दीदी ये जताने की कोलशश कर रही थीां कक उवहें इस घर के बारे में मुझसे
ज्यादा पता है। जबकक उनके जयपुर में नौकरी शुरू करने के बाद मैंतीन साल तक इस घर में रहा हूुँ
और मुझे इस घर की एक एक बारीकी पता थी जो उवहें घर में न होने के कारण पता ही नहीां हो
सकती।
घर के अदां र पहुांच के देखा तो दीवारों के रांग से लेकर फशय तक सब नया सा लग रहा था।
"ये फशय देखो ककतना प्यारा लग रहा है ?" दीदी ने घर दशयन में अपनी एक और दटप्पणी जोड़ी।
मेरे मुँुह से यनकल गया, " मुझे भी ददख ही रहा हैदीदी। " मेरे कहने के अांदाज से उवहें लग गया कक
शायद मेरा मूड ठीक नहीां हैइसललए आगे वो कुछ नहीां बोलीां।
मनैं े घूम घूम कर पूरा घर देख ललया।
"ऐसा लग ही नहीां रहा कक ये वही पुराना घर है। " मनैं े व्यांग्यात्मक लहजे में कहा तो मम्मी रसोई से
बाहर आ गयी , "ये घर भी वही पुराना हैऔर हम लोग भी वही पुराने हैंकेवल लीपा पोती हो गयी है।
" कह कर हांसने लगीां।
मनैं े आगे बढ़ कर मम्मी के पैर छुए और अपना सामान रखने के ललए जगह ढूांढने लगा। तो मम्मी ने
कहा ,"पीछे वाले कमरे में रख दो। "
मम्मी की बात सुनकर चौंक गया तयूांकक वो कमरा तो हमेशा सामान से भरा और बबखरा पड़ा रहता था।
घर में जो भी सामान ककसी काम न आ रहा हो उसे उस कमरे में रख देते थे। वैसे ऐसा हमेशा से नहीां
था , पहले वही हम सब बच्चों का कमरा होता था लेककन भैया और शोभा दीदी के बाहर चले जाने के
बाद अजां ूमम्मी के कमरे में ही पढ़ती और वहीीँ सो जाती, मैं ज्यादातर बैठक में ही रहता था। इस तरह
वो पीछे वाला कमरा के वल भांडार घर जैसा बन कर रह गया था। हाुँ जब कभी हम लोग आते तो कभी
जगह कम पड़ने पर उस कमरे में सोने भर की जगह बना ली जाती।
मैंपीछे कमरे में पहुांचा तो यहाां का भी नतशा बदल गया था। नया रांग , नया फशय और नया दीवान
स्जसपर नयी चादर जो शायद मम्मी ने उस ददन ही बदली थी।
मनैं े कमरे का मुआयना ककया और सामान रख कर बाहर आ गया। आुँगन में मुुुुुँह हाथ धलु कर साथ
में टांगे तौललये से हाथ पोछते हुए देख रहा था कक बहुत कुछ बदल गया था।
सब कुछ इतना अच्छा होने के बाद भी मुझे ये बदलाव ज्यादा पसांद नहीां आ रहा था तयूुँकक शायद मेरे
ललए मेरा घर वही पुराना वाला था ये तो कोई और ही घर था।
मम्मी ने मेज पर चाय नाश्ता लगा ददया शोभा दीदी सबके ललए नाश्ता प्लेट में यनकालने लगी। नाश्ता
यनकलते तक में पापा भी बाजार से राशन वगैरह लेकर आ गए। मनैं े जल्दी से पापा के पैर छुए और
नाश्ता करने बैठ गया। पापा सामने बैठे और प्लेट को अपनी ओर खखसकातेहुए बोले , "कै सा लग रहा
है सब ?"
मनैं े मुँुह में नाश्ता भरे हुए ही कहा , "अच्छा लग रहा हैलेककन सब बहुत बदल गया हैइसललए थोड़ा
अजीब लग रहा है। "
"अजीब मतलब ?" मम्मी भी बगल में आकर बैठ गईं। "अजीब मतलब, ऐसा लग रहा है ककसी और घर
में आ गए हैं। " मैंने समझाने के अांदाज में कहा।
सभी ने मेरी ओर एक बार देखा कफर नाश्ते में मशगूल हो गए। मनैं े नाश्ता ख़त्म ककया और आराम
करने के ललए कमरे में चला गया।
एक घांटे बाद मैंसो कर उठा और एक बार कफर घर की छानबीन करने लगा। घूमते घूमते मैंआुँगन के
कोने में रखे रांग के खाली डडब्बे ददखे तो उत्सुकतावश मनैं े उठा ललया और देखने लगा। मनैं े जब डडब्बे
पर दाम पढ़ा तो मेरा माथा ठनक गया।
"पापा आप को नहीां लगता आपने कुछ ज्यादा ही पैसे बबायद कर ददए ?" मेरे आवाज में थोड़ा गुथसा
था।
"पैसे बबायद कर ददए मतलब ?" पापा चौंक कर बोले।
"मैंने अभी वो रांग वाला डडब्बा देखा उसका दाम तो ...... इतना महांगा रांग करवाने की तया जरूरत थी
? इसके बाद इतना सब बदलाव। अच्छा खासा तो था घर खामख्वाह इतना खचय। पहले तो इतना खचय
घर पर आपने नहीां ककया अब तयों ?" बोलते हुए मैंपापा के बबथतर के ककनारे बैठ गया।
पापा कुछ बोलना चाहते थे लेककन मम्मी पहले बोल पड़ीां ,"रुको हम बताते हैं कक तयों इतना पैसा
बबायद ककया गया है और पहले तयों इतना खचाय नहीां ककया कभी। "
मम्मी ने आगे बोलना शुरू ककया , "चालीस साल पहले जब हम इस गाांव से शहर हम लोग तुम्हारे पापा
के काम की तलाश में आये और इस सालों से बांद पड़े पुश्तैनी घर में आये थे तब केवल भैया और
शोभा ही थे, तुम और अजां ूपैदा नहीां हुए थे। इतने पैसे नहीां थे कक बच्चों को पालें या रहन सहन सुधारें,
एक ही काम हो सकता था। हमने बच्चों को पालने पर ज्यादा ध्यान ददया। ये घर पहले ही टूटा फूटा
था, धीरे धीरे और जजयर होता जा रहा था। एक बार बातों बातों में हमने कहा कक दीपावली आ रही है,
घर में पुताई करवा लेते तो कम से कम ये दीवारें जो झड़ रही हैंकुछ देखने लायक हो जातीां। तुम्हारे
पापा नहीां बोले, बोलते भी कैसे घर में बच्चों के ललए पूरा खाना आ जाये वही बहुत था पुताई कहाुँसे
कराते। दो तीन ददन बीतने के बाद जब शाम को घर लौटे तो हाथ में एक थैला था। बतानेलगे कक
ऑकफस में थोड़ा प्लाथटर ऑफ़ पेररस बचा था वही ले आये और साथ में एक कूची भी लाये थे, शायद
ऑकफस से ही। दो ददन के बाद रपववार को खुद ही थटूल पर खड़े होकर पुताई करना शुरू कर दी। दो
बार थटूल लड़खड़ा गया और गगर पड़े लेककन पूरा ददन लगा कर दो कमरे जो हम इथतेमाल करते थे रांग
ललए। शाम को वो पुताई ककया हुआ कमरा उस पुराने बल्ब की रौशनी में भी खखल कर चमक रहा था।
हम दोनों अपने उस चमकते कमरे को देख कर मोदहत हुए जा रहे थे और मुझे इनपर गवय हो रहा था
तयूांकक चाहे जैसे भी हो लेककन मनैं े पहली बार कुछ माुँगा और इवहोने उसे इतनी खबूसूरती से पूरा
ककया।
इसके बाद दो-तीन साल तक हमने दोबारा घर में पुताई करवाने की सोची भी नहीां और उसके बाद जब
दीवारें बबलकुल ख़राब होने लगी हमने दोबारा पुताई करवाई लेककन इस बार थतर थोड़ा ऊपर हो गया
और एक मजदरू को बुला कर चनू ा पुतवाया गया।
हर दो-तीन साल में पुताई करते लेककन वही चनू ा इसके अलावा कुछ और करने की दहम्मत नहीां होती
तयूांकक बच्चे दो से चार हो चकुे थे और जैसे जैसे बड़े हो रहे थे खचेबढ़ते जा रहे थे। तुम्हारे पापा
बच्चों की पढाई और परवररश को हर चीज से ऊपर प्राथलमकता देते रहे।
तुम सब पढ़ ललख बाहर चले गए और यहाां रह गए हम दो प्राणी स्जवहोंने अपना जीवन यहीां काटा और
शायद अांत तक यहीां काटेंगे। अब जब कोई रहा ही नहीां तो घर ककसके ललए अच्छा बनाए।
पपछले साल तुम्हारे पापा कहने लगे कक घर की हालत बहुत ख़राब हो रही हैलेककन जब करेंगे तो सब
अच्छे से करेंगे बस यही लग रहा है कक बच्चों को ऐसा न लगे कक हम लोग पुराने घर पर इतना पैसा
बबायद कर रहे हैं।
इसपर मनैं े ही कहा कक बच्चों के ललए स्जतना हमें करना था कर चकुे अांजूको छोड़ कर सब कमाने भी
लगे। अब जो भी कमा रहे हो उसे अपने पर ही खचय करना है। अब और कोई शौक तो पूरा करने को
बचा नहीां है कम से कम अच्छे घर में तो रहें। रही बात बच्चों की उवहें तो अच्छा ही लगेगा कक पापा
मम्मी अब तो कम से कम साफ़ सुथरे अच्छे घर में रहते हैंऔर उवहें घर की पुताई खदु नहीां करनी
पड़ती।
लेककन तुम्हारे शब्दों ने आज दुःुख पहुुँचाया हैहम दोनों को, जब तुम्हारी पढ़ाई के ललए हम कम्प्यूटर
खरीद रहे थे तब पापा ने अपनी हैलसयत से ज्यादा कीमत का कम्प्यूटर खरीदा तब तुमनें नहीां कहा कक
इतना महांगा तयों और जब महांगे कपड़े तुम लोगों के ललए लेकर अपने ललए सबसे सथते कपडे ललए
तब तुमने नहीां कहा। तयों ? आज अपने ललए कुछ ककया तो तुमने महांगाई का सवाल उठा ददया और
कफर घर भी तया अपने अके ले के ललए ठीक कराया ?
हर काम में इवहेंबच्चे ही याद आते रहे , कमरे में रांग भैया और बबलूकी पसांद का ही लेते हैं, सोफे
बदल देते हैंअजां ूकहती हैबैठो तो घुस जाता है , ये टाइल और दरवाजे भी शोभा की पसांद को ध्यान
में रख कर ललए गए। अपनी पसांद का तो शायद ही कहीां ध्यान रखा हो।
कफर तुम जो कह रहे हो कक सब बहुत बदल गया हैतो बेटा बबलूबदलना तो प्रकृयत का यनयम हैहम
कौन होते हैंप्रकृयत से अलग जाने वाले। "
कहते कहते मम्मी की आुँखें नम हो गयीां और मुझे भी अपने शब्दों और रवैये पर गुथसा आने लगा।
मैंसर झुका कर बैठा था कक अचानक शोभा दीदी ने मेरे कांधे पर हाथ रखा , "अब अगर हो गया हो तो
ऊपर रांगीन झालर भी लगानी है चलें?" मैंने भीगी आखों से उसे देखा तो वो भी रोआुँसी सी हो रही थी।
मैंउससे ललपट गया उसने मेरे माथे को चमू ा और बोली ,"बड़ा हो जा भाई , अभी भी बात बात पर रो
देता है। "
मुझे उसकी बात पर हांसी आ गयी उधर मम्मी भी आुँखें पोछते हुए हांस रही थीां पापा केवल हलके से
मुथकुरा ददए।
मैंऔर दीदी दीपावली की तैयाररयों में लग गए भैया और अजां ूके पहुुँचने से पहले सब तैयारी कर लेना
जो चाह रहे थे।
इयत।
यनयतन श्रीवाथतव
By Nitin Srivastava
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