top of page

दरमियान।।...

Noted Nest

By Abhimanyu Bakshi



ज़िंदगी है फ़ुरसत-ओ-मसरूफ़ियत के दरमियान,

मैं खड़ा हूँ तसव्वुर-ओ-असलियत के दरमियान।


एक हसरत थी दोनों में राब्ता बनाने की,

अब दुश्मनी है ख़यालात-ओ-हक़ीक़त के दरमियान।


मरकर मिसाल बनने का भी तो ज़िम्मा है मुझ पर, 

कैसे जियूँ ला-फ़नाइयत-ओ-फ़नाइयत के दरमियान।


बन्दगी आती नहीं और भलाई ज़रा महँगी है,

मैं खड़ा हूँ इबादत-ओ-इंसानियत के दरमियान।


देखना ज़ाहिद कैसे फिर रुतबा मिट्टी होता है,

आकर बैठो कभी लोभ-ओ-रूहानियत के दरमियान।


By Abhimanyu Bakshi



303 views7 comments

Recent Posts

See All

Ghazal

By Murtaza Ansari आओ बैठो मेरी कुछ बात अभी बाकी है इस खामोश शख्स की आवाज़ अभी बाकी है ऐ काश यहाँ पर होता कोई अपना मेरा मेरे अपनों की मेरे...

हबीब कोई।।...

By Abhimanyu Bakshi आसमान को दिखाया है मैंने उसका रक़ीब कोई, बदलता है मौसम जैसे यहाँ पर हबीब कोई। उसे नई ख़ुश्बूओं से मिले फ़ुरसत, मैं...

कब होगी।।...

By Abhimanyu Bakshi मौसम मोहब्बत का यूँ तो अज़ल से है, उल्फ़त की बरसात कब होगी। शुक्रिया जो बुलाया हमें दावत पे, पर दिल की मुलाक़ात कब...

7 Comments


Muskan Datta
Muskan Datta
Nov 10, 2024

Very well written!

Like

seema pahwa
seema pahwa
Nov 10, 2024

Woww nice

Like

Piyushgarment
Nov 10, 2024

Beautiful poem

Edited
Like

Karan Kalra
Karan Kalra
Nov 10, 2024

Wah wah, subhan allah

Like

raghav kalra
raghav kalra
Nov 10, 2024

Very nice

Edited
Like
bottom of page