By Sushma Vohra
तुलसी एक ऐसा पौधा जो दैविय और औषधीय गुणों से ओत प्रोत है। सनातन धर्म में इसे पूजनीय और पवित्र माना गया है। इसे देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है और भगवान विष्णु को यह बहुत प्रिय है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहाँ सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। वास्तु शास्त्र में यह पौधा घरों के लिए कल्याणकारी है। तुलसी को विशेष पद श्री विष्णु ने दिया है।
तुलसी पिछले जन्म में वृंदा नाम की लड़की थी, जिसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वो बचपन से ही श्री विष्णु की भक्त थी। बड़े होने पर उसका विवाह राक्षस राज जलंधर से हो गया। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और अपने पति की सेवा में लीन रहती थी। एक बार देवताओं और राक्षसों में युद्ध छिड़ गया। जब जलंधर युद्ध के लिए जाने लगे तो वृंदा ने संकल्प लिया कि वो उसकी जीत की कामना के लिए पूजा पर बैठेगी और राक्षसराज के वापिस आने पर संकल्प तोड़ेगी। वृंदा के व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को मार नहीं पा रहे थे तब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए। श्री विष्णु ने कहा मैं क्या कर सकता हूँ, वृंदा मेरी परम भक्त है। देवताओं ने कोई उपाय सुझाने को कहा तब श्री विष्णु जलंधर का रूप धर वृंदा के महल में आ गए। पति को देख वृंदा पूजा से उठ पति के पास आ गई और उसके चरण- स्पर्श किए, तभी देवताओं ने जलंधर का सर काट दिया और वो सर महल में आ गिरा। सर देख वृंदा हैरानी से श्री विष्णु को देखने लगी, वे अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न पाए। वृंदा ने कुपित हो श्री विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। क्ष्राप के फलस्वरूप श्री हरि पत्थर बन गए । यह देख देवताओं में हाहाकार मच गया वे वृंदा से श्राप वापिस लेने हेतू प्रार्थना करने लगे। तब वृंदा ने श्राप वापिस ले लिया और पति का सर लेकर सती हो गई। उन दोनों की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, श्री विष्णु ने उसे तुलसी का नाम दिया और खुद के पत्थर रूप को शालिग्राम का नाम दिया और बोले तुलसी और शालिग्राम एक साथ पूजे जाएगें। तभी से तुलसी पूजनीय हो गई।है।
तुलसी की पूजा करने से मन में अच्छे विचार आते हैं। इसका प्रभाव शुभ है जो नकारात्मक शक्तियों का नाश और सकारात्मक उर्जा को आने का मार्ग सशक्त करता है। तुलसी जी का वेदों और पुराणों में भी महत्व लिखा गया है। इसकी पूजा आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। तुलसी को पुष्पसारा, नन्दिनी, वृंदा, वृंदावनी, विश्वपूजिता, तुलसी, कृष्ण जीवनी और हरिप्रिया के नामों से भी जाना जाता है। श्री विष्णु जी भक्ति में लीन वृंदा की भक्ति का ही परिणाम है कि निधि वन में केवल तुलसी जी ही विराजमान है लोक किंवदंती है भगवान कृष्ण आज भी वहाँ गोपियों के संग रास रचाते हैं।
हमारे साधु संतों ने तुलसी-पूजन दिवस की अवसर पर पूजा विधि के निगम बनाए है।
-प्रातः काल स्नानादि से निवृत हो तुलसी को प्रणाम करें।
- पूजन संध्याकाल में करें।
- चौकी पर वस्त्र बिछाए, तुलसी का पौधा प्रतिष्ठित करें, शालिग्राम का आसन लगाए और उन्हें बिठाएं, कलश में जल भर कर , गाय के घी का दीपक जलाएं
-सात बार परिक्रमा करें।
-तुलसी मंत्र , तुलसी स्त्रोत् और तुलसी आरती करें।
तुलसी जी को रविवार और एकादशी के दिन जल देना वर्जित है, कहते हैं वृंदा इस दिन व्रत रखती थी।
तुलसी का वैज्ञानिक नाम ओसिमम टेनुरफ्लोरम है, यह लैनियासी परिवार में आया है , यह बारहमासी सुंगधित पौधा है। यह एक द्बिबीजपत्री तथा शाकीय पौधा है। यह एक लचीला पौधा है जिस कारण कठिन परिस्थितियों में भी उग जाता है। वेदों के अनुसार इसे गुरुवार को लगाना शुभ होता है।
अगर बात करें औषधीय गुणों की तो तुलसी के सेवन से गर्मी, सर्दी में हमेशा एक प्रतिरक्षा प्रणाली बनी रहती है। इसकी पत्तियों के सेवन से बुखार, दिल से जुड़ी बिमारियाँ, पेट दर्द ,मलेरिया, बैक्टीरियल सक्रंमण आदि में फायदा मिलता है। इसके पत्ते भूख बढ़ाने में सहायक होते हैं।
इसकी पूजा के समय कुछ बातों का थान रखना चाहिए वो इसप्रकार है।
-हमेशा घी का दीपक ही जलाना चाहिए।
-इसकी जड़ों में सिंदूर नहीं लगाना चाहिए, अगर लगाना है तो किसी तने पर हल्का से लगा दे। मिट्टी दूषित होती है। सिंदूर से पौधा सूख सकता है।
-तुलसी की मिट्टी में पूजा-पाठ की सामग्री न छोड़े और अगरबती न जलाएं।
-इसके आस-पास गंदगी इक्कठ्ठी न करें।
-जूते या चप्पल पास न रखें।
- शिवलिंग से तुलसी जी को दूर रखें क्यूंकि भगवान शिव जी द्वारा ही इस वृंदा के पति जलंधर को मृत्यु प्राप्त हुई थी। इसीलिए शिवजी पर कभी भी तुलसी नहीं अर्पित करनी चाहिए।
- झाडू तुलसी जी से दूर रखें
-काँटेदार पौधे तुलसी जी के आस-पास न रखे।
तुलसी जी की पूजा करने से शुभ फल मिलते हैं। नकारात्मक उर्जा का सकारात्मक उर्जा में बदलाव होता है। यह मनुष्य में नई उर्जा का संचार करती है। मनुष्य को माँ लक्ष्मी, श्री विष्णु दोनों का आर्शीवाद मिलता है। श्रद्धा से की पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
By Sushma Vohra
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