By Kirti Sharma
कभी समंदर की लहरों में खोना,
तो कभी हवा संग गीत गुनगुनाना,
तो कभी धूल बनके,
पुरानी यादों को सहेज लाना,
तुम रेत बन जाना।
कभी सूरज की किरणों में चमकना,
तो कभी पेड़ों संग नृत्य करना,
तो कभी आंधी बनके,
घर के आंगन में बिखरना,
तुम रेत बन जाना।
कभी पर्वत सा विशाल बनना,
तो कभी कंकरों संग खेल खेलना ,
कभी धरती की गहराई में छिप जाना,
तो कभी आकाश में फैला होना,
तुम रेत बन जाना।
कभी नदी संग बहती धारा बनना,
तो कभी नन्हे बीजों में जीवन बिखेरना,
कभी भूमि में समाकर,
वृक्षों की जड़ों में प्राण संचारना,
तुम रेत बन जाना।
कभी पैरों की मिट्टी बनके,
बचपन की सैर करवाना,
कभी बारिश की बूँदों संग मिलके,
मीठी सी सुगंध छोड़ जाना,
तुम रेत बन जाना।
कभी ढलकर तो कभी बिखरकर,
तुम हर रूप को अपनाना,
और सभी रूपों में मुस्कुराना,
जब चाहे तुम्हें कोई मुट्ठी में क़ैद करना,
तो तुम रेत बन जाना।
By Kirti Sharma
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