By Abhimanyu Bakshi
कई पहेलियाँ सुलझाना चाहता हूँ,
मैं अपनी तस्वीर बनाना चाहता हूँ।
वक़्त ज़ाया करना अब गवारा नहीं ,
मैं तनहाइयाँ मिटाना चाहता हूँ।
बड़ी मुश्किल हैं राहें दरमियान की,
एक सम्त होकर नाव चलाना चाहता हूँ।
अब सहर का इंतज़ार नहीं होता,
एक सूरज ख़ुद में जगाना चाहता हूँ।
डर, घबराहट, फ़िक्र, आजिज़ी, गुमान,
सूखे पत्तों के मानिंद जलाना चाहता हूँ।
बहुत सुन ली मैंने अपने ख़्यालों की,
अब ज़रा खामोशी की सुनना चाहता हूँ।
By Abhimanyu Bakshi
Welldone!👌🏻👌🏻
Bhut khooob👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👍
Nice
Good ✌️keep it up 👍
atti uttam👌👌