By Vandana Singh Vasvani
खर्राटे – ये शब्द सुनते ही बचपन में मौसा,दादाजी, ताऊ जी बाबूजी एवं अन्य सब याद आ जाते हैं कहने का मतलब है उनके खर्राटे याद आ जाते है।
खर्राटों की दुनिया भी अजीब होती है किसी के लिए चैन की नींद और हर किसी के लिए नींद हराम हो जाती है।
इस कहानी में भी आपको खर्राटे की दुनिया में ले जाएंगे लेकिन थोड़ा एड्वेंचर है ।
तो सुनिए यह कहानी है देहरादून में रहने वाले बहुत ही प्यारे परिवार के – इस परिवार में दादा,दादी,बड़े पाप ,बड़ी माँ, माँ,पापा ,चाचा ,चाची , दो बहनें और पांच भाई है। इस कहानी में पांच भाइयों का नाम जानना बहुत जरूरी है क्योंकि पूरी कहानी इन पांच भाइयों के ऊपर ही है.
भाई का नाम है :-
रण विजय सिंह,रतन सिंह , भानु सिंह, दिग्विजय सिंह एवं प्रताप सिंह .
कुल दो सालों के बाद ये पांचों भाई वापस देहरादून में मिलने वाले थे । असल में बड़े भाई रणविजय सिंह लंदन में अपनी एम. बी .ए. की पढ़ाई पूरी कर के लौट रहे थे और बाकी के चारो भाई पुणे में अपनी पढ़ाई पूरी कर के देहरादून लौट रहे थे । पांचों भाइयों के बीच बेस्ट फ्रेंड जैसा रिश्ता है।
पांचों भाइयों के फ्लाइट और ट्रेन का समय अलग अलग था अब ऐसे में एक निर्धारित समय तय किया गया कि देहरादून में ठीक रात्रि के ये 11:00 बजे सभी एक रेस्टोरेंट में मिलेंगे । सबसे पहले देहरादून की धरती पर कदम रखते हैं बड़े भाई रणविजय सिंह। “Coffee with peace“ इसी रेस्टोरेंट में सारे भाई मिलते है। तो जब पाँचों भाई एक साथ मिले मानो वक्त थम सा गया था । उछल कूद हँसी ठहाके सब कुछ मिलके कॉफी का स्वाद बढ़ा रहे थे। अब सबसे छोटे भाई के दिमाग में थोड़ी शरारत आई और उसने कहा हम सभी अचानक से जाके घर वालों को चौंका देंगे। हम सभी पाइप से चढ़ते हुए बड़े बाबू जी के कमरे में दाखिल होंगे और तब हॉल में जाके लाइट्स ऑन कर देंगे।
पाँचों भाई ठीक उसी तरह से बड़े बाबू जी के कमरे में कदम रखते हैं – अचानक से कमरे से आवाज आई र्टा ...फुर्र ...टर्र ....फर्रे टर्न थ र थर थर थर थर भड़भड़ हर हर थर थर .......ये आवाज इतनी डरावनी लगी मानो जंगल से कोई जंगली जानवर आवाज निकाल रहा हो फिर क्या था पाँचों भाई एक ही जगह जमकर खड़े हो जाते हैं। इतने में मझले भाई ने कहा सुनो हम सीधा ना दादा जी के कमरे में चलते हैं और फिर वहीं से उनको उठाकर लाते है फिर देखते हैं कि इस कमरे में कौन है?
कुछ ही क्षण में पांचों भाइयों की टीम दादाजी के कमरे में पहुँच चुकी थी। उस कमरे में और भी ज्यादा खतरनाक आवाजें आ रही थी मानो जंगली भालू दहाड़े मार रहा हो । थर्ड थर्ड .....फड़क फड़क फड़क ...... ये आवाजें इतने सुर में थी की कानों में ऐसे गूंज रही थी मानो आपको डरावनी दुनिया में टहलाकर कर अकेला छोड़ देंगे। अचानक से फिर एक आवाज़ आई सु सु सु सी ए सिप ..सिप.... सिप - चौथे नंबर के भाई ने कहा पक्का कोई जानवर अंदर आ गया है घर में ये कहीं कोई जंगली साफ तो नहीं है ओह गॉड एक ही बार में निकल जाएगा हम सब को । इतने मेँ बड़े भाई ने कहा चुप हो जाओ तुम सब , दादाजी की चिंता नहीं हो रही । कुछ भी करके हमें देखना ही पड़ेगा की आखिर ये आवाज कैसी है और कहाँ से आ रही है इतनी डरावनी इतनी खतरनाक आवाज इतनी तरह तरह की जानवरों की आवाज़ें।
पाँचों भाई एक साथ हॉल में इकट्ठा होते हैं और जो जिसके हाथ में आया लैब बोतल लेकर हॉल की लाइट जला देते हैं फिर दादाजी के कमरे में कूच कर जाते हैं। कमरे की लाइट ऑन करते हैं दादाजी के बिस्तर से तरह तरह की डरावनी आवाज या यूं कहें कि live show देख कर जो जिसके हाथ में था वही गिर जाता है । और दादाजी की नींद खुल जाती हैं । बुढ़ापे की वजह से कमजोर आँखों को जमाने का आईना पहनाते हुए दादाजी अपनी छड़ी हाथ में लेते हुए बोलते हैं – इतनी रात को इतनी सारे चीजें कौन गिरा रहा है कौन है ? और फिर अचानक अपने पांचों पोतों को सामने देखकर दादाजी खिलखिला उठते है – ओह ओह ये तो मेरे चराग है । आ जाओ आ जाओ मेरे बच्चों मेरे गले लग जाओ । पाँचों भाई दरवाजे के पास ही चुपचाप खड़े हैं और दादा जी को एक टक टकी से देखे जा रहे हैं । फिर एक साथ कोरस में आवाज आती है ओह गॉड कूल डूड जी आप हो हमारा मतलब है ये आवाजें आप निकाल रहे थे ? दादाजी बोलते हुए – अरे कैसी आवाज कौन सी आवाज़ ? मैं तो गहरी नींद में सोया पड़ा था । अगर कोई आवाज होती तो तेरे दादी इतने आराम से कैसे सोती देख वो कैसे सो रही है ।
पुनः पांचों भाई एक साथ बोलते Poor दादी we all with you.
अरे तुम पांचों को हुआ क्या है दादाजी बोलते हुए आखिर क्या सुन लिया है तुम लोगो ने । चलो चलो आओ बच्चों आओ दिल को ठंडक तो पहुँचाओ गले लग जाओ। बस तभी अचानक से दिग्विजय सिंह को एक बात ध्यान आती है । और वो बोलता है दादाजी आप बड़े बाबूजी के कमरे में चलो वही जाकर हम आपको सुना सकते हैं कि हम किस आवाज के बारे में बात कर रहे थे और हम पांचों क्यों डर गए थे।
इस बार दादाजी Live Telecast सुन एवं देख रहे थे ।
बस इस बार दादाजी कमरे की आवाज सुनकर चौंक गए ।
बड़े बाबूजी की नाक और खुले मुँह को देखकर दादाजी को मानो अहसास हो गया हो ये कितना ज्यादा डरावना लग रहा है। बच्चो तुम लोगों ने सही कहा ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो किसी जानवर की आवाज हो। यही अवसर था जब पाँचों भाई फिर से एक साथ बोल पड़े – अब समझ में आया दादा जी की दादी की क्या हालत होती होगी जब वो आपके बगल में इन आवाजों के साथ सोने की कोशिश करती होंगी। खैर इन सब बातों के बीच सारे घरवाले आधीरात को जग जाते हैं और सभी पाँचों भाइयो को देखकर अति उत्साहित हो जाते हैं। और पूरे घर में खुशी के दिए जल जाते हैं । रात तो आँधी ढल ही चुकी थी और पांचों भाई खूब थक गए थे अब तो बस उन्हें कुछ खाने के लिए चाहिए था घर वाला खाना और सोने के लिए बिस्तर। सालों बाद अपने घर में अपने कमरे में अपना वाला बिस्तर मिलना मानो जन्नत से कम नहीं था । गहरी नींद में पूरा घर तो सो रहा था लेकिन दादाजी की नींद उड़ चुकी थी ।
वो इधर उधर करवट बदलते हुए एक ही बात सोच रहे थे मैं कितना स्वार्थी हूँ जाने कब से नंदिनी(इनकी धर्मपत्नी ) की नींद खराब करता आया हूँ ।
सुबह की लालिमा छाने वाली ही थी की दादाजी और दादी जी दोनों सूर्य नमस्कार करने के लिए छत के गार्डन में खड़े होते हैं और सूर्य नमस्कार करने के उपरान्त दादाजी अपनी धर्म पत्नी नंदिनी जी से पूछते सुनो नंदिनी कितने बरस बीत गए अब मैं 70 साल का बूढ़ा आदमी हूँ तो सच बताना तुमको मुझसे कोई शिकायत तो नहीं है ना ? नंदिनी मुस्कुराती है – आज आपको क्या हो गया है सुबह सुबह कैसी बहकी - बहकी बातें कर रहे हैं आप आपने मुझे पूरा घर संसार दिया है जी मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है । दादाजी के मन में महिलाओं के प्रति सदा सुमन के पुष्प अंकुरित हो जाते हैं। और वो मन ही मन कहते हैं महिलाएं कितनी ज्यादा संवेदनशील और सहनशील होती है।
मेरी डरावनी खर्राटों की कोई शिकायत नहीं की है नंदिनी ने लेकिन मुझे अंदर ही यह बात खाये जा रही है मैं बुड्ढा अपने फूलों जैसी नाजुक नंदिनी के नींद में कितना बाधा डालता हूँ ।
आज जाने कितने सालों बाद घर में पकवान बन रहे थे और पूरा घर तरह तरह के व्यंजन के खुशबू में ढल चुका था । डायनिंग टेबल पर सभी इकट्ठा होते है और हँसी खुशी के माहौल में नाश्ते में मीठी दलिया , जलेबियां , पूरी , आलू रस , हलवा , कचौड़ियां और गुलाब जामुन सब कुछ सजा हुआ था । पूरा परिवार एक साथ नाश्ते का आनंद उठा रहा है । लेकिन शांत उदास दादाजी चुपचाप गुमसुम से है । तभी रत्न सिंह दादाजी के पास आकर कान में बोलता है – दादाजी परेशान मत हो मैं आपको डॉक्टर के पास ले जाऊंगा इस तरह के तेज खर्राटों का भी इलाज होता है । अब आँधी जिंदगी जिंदगी तो आप दादी की खराब कर चूके हो अब आंधी चैन से जीने दो।
दादा जी रतन सिंह के कान खींचते हैं और बोलते हैं बदमाश कहीं का ।
दोपहर की लंच के बाद पाँचों भाई घर के लाइब्रेरी में इकट्ठा होते और इकट्ठा होने का मुद्दा था घर के खर्राटों के आतंक का क्या किया जाए?
सबसे छोटे जनाब बोलते हैं सब को बारी बारी डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए क्योंकि मुझे बचपन वाला प्यार चाहिए दादाजी से मुझे उनके साथ चिपककर सोना है। लेकिन ये अभी पॉसिबल नहीं है बिकॉज़ दादाजी के खर्राटों की आवाज मुझे जंगल में पहुंचा देगी । इतने में दिग्विजय जी की माँ आ जाती हैं और कहती है बड़े बुजुर्गों के खर्राटों का मजाक बनाया जा रहा है गलत बात हैं बच्चो ऐसा नहीं करते । तभी पाँचों बोलते हैं माँ मजाक नहीं है उनकी चिंता है हम चाहते हैं की वो खूब आराम से सोए और कुछ नहीं ।
शाम की चाय पर पूरा परिवार एक साथ बैठा हुआ है और तब दादाजी कल रात की पूरी घटना बताते है। जब ये- बड़े बाबूजी,ताऊ जी चाचा , जी चाची जी,सबने पूरी कहानी सुनी तो ठहाके लगाकर पेट पकड़कर हंसने लगते हैं । लेकिन उन्हें हँसी के ठहाकों की आवाज में चाचा जी , ताऊ जी, और दादाजी सबके मन में एक सवाल जरूर पैदा होता है कि हम खुद तो कितने चैन से सो जाते लेकिन ऐसी डरावनी आवाज से क्या हमारी जो धर्म पत्नी है वो कब से नहीं सोई है । .......... चाचा जी बोलते हैं - खर्राटे तो माँ भी लेती है मगर ऐसी डरावनी नहीं ।
पांचों भाइयों को एक शरारत सूझ रही है और आज रात का प्लान बना कि जब सब सो रहे होंगे तब खर्राटों की खतरनाक वाली आवाज़ रिकॉर्ड की जाएगी। और जैसा कि प्लान तय हुआ था वैसा ही बारी बारी सब के कमरे में जाकर खर्राटे की आवाज रिकॉर्ड की गई । अगले दिन सुबह सुबह आरती भजन होने के बाद ब्लूटूथ से कनेक्ट करके मोबाइल में रिकॉर्ड की गई आवाज पूरी हाल में गूंजने लगी। अब तो पूरा घर मानो तरह तरह के खर्राटों के आवाज से गूंज उठा था। जितनी भी बड़े बुजुर्ग घर में खर्राटों की दुनिया में सोते थे वो एक दूसरे की शक्ल देख रहे हैं – इतनी बुरी आवाज़ें आखिर हो क्या जाता है नींद में अरे ताऊ जी यकीनन आपकी आवाज सबसे ज्यादा तेज है , और चाचा जी आप भी कम नहीं है क्या सुर में सुर मिला रहे हैं आप और दादाजी तो कमाल का सुर ताल है खर्राटों में । घर की सारी औरतें यानी कि चार चार पीढ़ियां है उस घर में सब खूब हंसने लगती है । पोती , बहू , बेटी , चाची , दादी।
पाँचों भाई इकट्ठा होते हैं और हाथ जोड़ कर घर के सारे बड़ों से क्षमा मांगते है – हमारा इरादा आप का मजाक बनाना नहीं था हम सब आपके लिए ये सोच रहे थे की आप सभी डॉक्टर से भी कंसल्ट करें।और मैंने देखा है योगा करने से भी इतनी भयानक खर्राटों की आवाज को और रोका जा सकता है। तो कल से दादाजी आपकी जिम्मेदारी है की आप अपने खर्राटों के समुदाय के लोगों को इकट्ठा करेंगे और योग कराने के लिए आपका बड़ा पोता आपके साथ सुबह सात बजे तैयार रहेगा । दादाजी हम आपसे इतना प्यार करते है की आपके बगल में आज भी अगर हम सोएंगे तो शायद आपके खर्राटों के सात सो जाए लेकिन जिस चीज़ को योग से और थोड़े से प्रयास से सुधारा जा सकता है तो उसको क्यों न ठीक किया जाए।
दादाजी अपनी मूंछों को ताव देते हुए बोलते देखा तुम लोगो ने ये है हमारी पीढ़ी नई पीढ़ी जो हमारे कितनी इज्जत करती है और हमारे लिए कितना सोचती है । I’m really proud of you all .
इस कहानी का सार इतना ही है की जब भी हम अपने परिवार या परिवार के लोगों से स्नेह और प्रेम करते हैं तो हम छोटी छोटी बातों का भी ख्याल रखें। किसी चीज़ की आदत होना प्रेम में सहज और सरल है लेकिन किसी के आराम का ध्यान रखना भी सहज और सरल ही है।
By Vandana Singh Vasvani
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