By Ajay Yadav
एक क़िताब मुझसे बातें करती है,
पूछती रहती है एक सवाल है।
कहती है, तुमने फाड़ा था जो पन्ना,
उसके निशान आज भी ज़िंदा हैं।
तुम्हें वह दर्द महसूस होता है
जब बैठते हो संग मेरे,
छूते हो उन पन्नों के बचे हुए अंश को।
क्या सोचते हो, इन्हें भी जला दोगे?
मिटा दोगे उसे पूरी तरह?
महसूस होता है वह ताप अब भी
जिसमें इन्हें जलाया था।
ताप ने सुखा दिया उन आंसुओं को
जो बहा करते थे इन पन्नों पर।
मुझे वह शाम याद है, और ताप भी
एक सवाल और,
मुझे अपूर्ण क्यों छोड़ा?
मेरे उन हिस्सों को अलग कर,
सच बदला गया क्या?
मेरी अपूर्ण कहानी की,
तुम पूर्ण एक किताब हो।
इस अधूरेपन में,
कुछ संभावनाओं की,
तुम एक आस हो।
By Ajay Yadav
Comments