By Arsh Raz
सुन ए मुसाफ़िर प्यार के
एक दास्ताँ तू आज सुन ।
तू सुन लब्ज़ मेरी दिलकशी के
एक कारवा तू आज सुन ।
जिस उन्स की तू बात करता
क्या वो दिल की आदत बन चुका ।
हां बन चुका तो शहादत दे
की नैन उसकी रियाज़त में नम शुदा ।
तो अब उस अनोखी एहसासत में
तू इश्क की ज्योती जला ।
और अकीदत रख ले प्यार पर
जो न मिला, वो अब मिला ।
हां कर इबादत महबूब से
और एक दास्ताँ उसको सुना ।
की उसे कितनी जुनूनियत से चाहा था
और उसमें तू कितना फ़ना ।
की मौत ही अब आखिरी है
तेरे और उसके दरमिया ।
हां अधूरा है तो क्या हुआ
यें अधूरी सुर्खियां।
By Arsh Raz
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