By Kishor Ramchandra Danake
“मैं गायत्री..!” जिंदगी मानो नरक जैसी हो गई है। जिन्हें समझ नहीं उन्हें मै अपनी स्थिति बयां नहीं कर सकती, और जिन्हें समझ है वे सुनने की स्थिति में नहीं। अब मेरे आंसू ही मेरा सहारा है। वे जितना बहते जाते, उतना ही मेरे रूह को सुकून मिलता है। परिस्थितियों का मुझपर बहुत ही रोष है। लेकिन फिर भी मैंने खुद को खड़ा किया हुआ है। इस आशा में की एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। हर एक पल मेरे लिए उम्मीद है। क्योंकि ऊपरवाला मेरे साथ है।
स्कूल में वह “प्रेरणा!” मेरा इस साल बोर्ड में पहला क्रमांक आ सकता है ऐसे कुछ टीचर्स और बच्चे कहते है तो क्यों जलती है ये इतना? रवि उसे पसंद है और रवि को मैं। बस यही असली कारण है मुझे परेशान करने का। वह और उसका ग्रुप रोज मेरा मजाक उड़ाते है। उसके पिताजी अध्यापक है ना इसलिए बहुत हवा में उड़ती है। उसने मेरे ऊपर मराठी में जैसी मजाक वाली आयतें बनाई है, वैसे मैंने भी उसके ऊपर बनाई हैं। एक दिन उसके मुंह पर बोल दूंगी।
यह तो रोज का हो गया है।
“रवि!” बेचारा... कितनी बार उसने मुझसे कहा कि, मै उसे पसंद हूँ और मेरे साथ बाते करने के कितने मौके ढूंढता है। मुझे तो बहुत बुरा लगता है। मुझे वह अच्छा लगता है। लेकिन फिलहाल मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं सोचना है। उसे ‘हां’ या ‘ना’ कैसे बोलूं इस पहेली में ही मैं फंस गई हूं।
यह भी रोज का हो गया है।
“मेरे बाबा!” जूए में जकड़े हुए बैल जैसी मेहनत करते है, और रात को शराब पीकर आई के साथ झगड़े। क्या फायदा ऐसी जिंदगी का? क्या खालीपन है उनके अंदर जो उन्हें खाए जा रहा है? कुछ समझ में नहीं आ रहा।
यह भी अब रोज का हो गया है।
और अब मेरे वह “बेशरम चाचा!” मैं बड़ी हो गई हूं। मुझे समझ है अलग अलग ‘स्पर्श’ की। उनके छूने से अब मुझे घृणा होती है। बचपन में ऐसा लगता था वे मुझे प्यार से छू रहे है। लेकिन अब मुझे सब समझ में आ गया है। मैं चुपचाप बैठती हूं इसका वे फायदा उठाते है। मुझे यह बात तो किसी को बताने के लिए भी शर्म आती है। आई को बताऊंगी तो उसे कैसा महसूस होगा। पापा को कैसा लगेगा। वे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।
यह भी अब रोज का ही हो गया है।
स्कूल में मेरी कोई अच्छी दोस्त नहीं। मैं खुद ही खुद का आधार हूं। मेरे मन में ही मेरी अच्छी दुनिया है। फिर भी जिंदगी से खुश हूं। मेरी सांस ऊपरवाले का तोहफा है और मैं इसे कबूल कर चुकी हूं।
यह सारी बाते गायत्री के मन में दौड़ ही रही थी कि, आई की पुकार उसके कानों पर आकर टकराई।
वह अपना बिछाना और आंसुओं से भीगा तकिया उठाने में लग गई। गायत्री की सुबह ऐसी ही खेद भरे विचारों से शुरू होती है।
फिर गायत्री बाहर आकर अपने आई के पास चूल्हे के सामने बैठ गई।
आई ने कहा, “गायु, आज शनिवार है तो स्कूल जल्द ही छूटेगा ना?”
“हां आई,” गायत्री ने कहा।
“आज हम हमारा इतना आंगन गोबर से लीप लेंगे, और घर की दीवारें भी बाहर से मिट्टी से लिपेंगे। थोड़ी देर के बाद मैं रास्ते से मिट्टी लेकर आऊंगी,” आई ने कहा।
“ठीक है आई,” ऐसा कहते हुए गायत्री ने चूल्हे के ऊपर रखे बर्तन में से गरम पानी अपने बाल्टी में डाल लिया।
गायत्री का घर मतलब कूड़ और मिट्टी की एक बड़ी खोली। खोली को एक दरवाजा, एक खिड़की और गंज चढ़े पत्रों की छत।
एक तरफ खाना बनाने की जगह। बीच में दीवार को लगाकर एक पलंग। और दूसरी दीवार की तरफ अलमारी, कुछ पुराने संदूकें और लकड़ी का टेबल जिसपर बहुत से कपड़े पड़े हुए थे।
खुद का सब सवारने के बाद गायत्री पलंग पर बैठकर अपना अधूरा लिखना पूरा करने लगी। दादू नहा रहा था।
“सुनीता! मैं चला,” गायत्री के बाबा ने गायत्री के आई को कहते हुए घर के बाहर अपना कदम रखा।
“दादू, जल्दी कर सात बज गए है। पता है ना आठ को स्कूल भरता है। पिछली बार तेरी वजह से हमें लेट आने वाले बच्चों में बैठना पड़ा था,” गायत्री ने चिल्लाकर कहा।
“हाँ दीदी। आया मैं,” दादू ने भी चिल्लाकर कहा।
सुनीता का पोहा बनाना चल रहा था।
उसी वक्त गायत्री के चाचा आकर पलंग पर गायत्री के पास बैठ गए। चाचा को देखकर गायत्री का चेहरा गिर गया, और उसका दांत चबाना शुरू हो गया।
चाचा ने उसके जांघ पर हाथ रखकर कहा, “हो गई तैयारी स्कूल जाने की, गायत्री?”
गायत्री को चुभन सी होने लगी थी; वह गुस्से से भर गई।
“हां, हो गई तैयारी,” ऐसा कहते हुए गायत्री अपने आई के पास जाकर बैठ गई, और अपना और दादू का टिफिन भरने लगी।
सुनीता को तो यह बात सामान्य लगी।
उसी वक्त दादू घर में आकर टेबल पर पड़े अपने स्कूल के कपड़े उठाकर पहनने लगा।
“थोड़ा पोहा खा लो भैय्याजी,” ऐसा कहते हुए सुनीता ने गायत्री के चाचा को पोहे दिए।
दादू की तैयारी होने के बाद गायत्री और दादू अपने स्कूल के लिए निकल पड़े।
वे ‘तीनचारी’ गांव में रहते है। ‘कर्मवीर भाऊराव पाटील’ यह गायत्री का स्कूल; कोपरगांव में साईं बाबा कॉर्नर के पास है। लगभग चार किलोमीटर का यह फासला वे रिक्शा से पार करते है।
गायत्री आखिरी बेंच पर बैठती है; अकेले।
बैठे - बैठे वह रोज की तरह मन ही मन खुद से बात करने लगी,
“आज का दिन थोड़ा सा अच्छा ही लग रहा है। उम्मीद है कि आज जरूर थोड़ा सा बदलाव होगा। हे ऊपरवाले..! तेरा आशीष बरसा।“
उसी वक्त क्लास में क्लास टीचर आई। लेकिन आज वह अकेले नहीं बल्कि उनके साथ एक लड़की भी थी। सब बच्चे शांति से अपनी आँखें फाड़कर उस लड़की की तरफ ही देख रहे थे। खासकर लड़कों की हलचल थोड़ी असामान्य थी। किसी की हीs हीs करने की तो किसी की खास ने की आवाजें आ रही थी। मन ही मन खुशी के गुब्बारे फूट रहे थे उनके। जाहिर सी बात थी, लड़की दिखने में सच में बहुत खूबसूरत थी।
“यह नई छात्रा है,” टीचर ने कहा। “अपना नाम बताओ।“
उस लड़की ने कहा, “मेरा पूरा नाम ‘अक्षदा श्रीकांत बोर्डे’ है।
“वाsss व... अक्षदाss... मेरे तो शरीर पे काटा आ गया। अक्षदा का मतलब क्या तो ‘ऊपरवाले का आशीर्वाद’। ऊपरवाले तेरी नजरे सच में मेरे ऊपर है,” गायत्री अपने आप से बात करने लगी। “लेकिन वह मेरी दोस्त बनेगी क्या?” वह थोड़ा सा निराश हो गई।
टीचर ने कहा, “अक्षदा, जाकर उस बेंच पर उस लड़की के साथ बैठो। उसका नाम ‘गायत्री’ है।
“अरे बाप रे..! ऊपरवाले तू तो सच में बहुत जबरदस्त है। मेरा दिल तो खुशी से झूमने लगा है,” गायत्री के मन में यह लहरें उठने लगी; उसी वक्त अक्षदा ने कहा, “हैलो गायत्री... मैं अक्षदा।“ और उसके हाथ में हाथ मिलाया।
गायत्री ने भी धीमी आवाज में हैलो बोला और फिर से अपनी सोच में खो गई,
“चेहरे पर ऐसी रोशनी मैंने अब तक कही नहीं देखी। लग रहा है जैसे, मुरझाते हुए पौधे को किसी ने गिल्लास भर पानी डाला हो। लग रहा है जैसे, न जलने वाले गिले लकड़ी पर किसी ने रॉकेल की बरसात कर दी हो, और मानो जैसे जमीन पर तड़फड़ाती हुई मछली को किसी ने पानी में छोड़ दिया हो।“
ब्रेक हुआ...
कुछ छात्राएं बाहर चले गए तो कुछ क्लास में ही थे। जिसमें ‘प्रेरणा’ और उसका ग्रुप भी था।
अक्षदा गायत्री के साथ बाहर जाने लगी।
उसी वक्त प्रेरणा ने आवाज देकर कहा, “देख अक्षदा, हमारा ग्रुप सबसे बड़ा है। सारी होशियार लड़कियां है हमारे ग्रुप में। उस गाय के साथ क्या रहती हो। हमारे ग्रुप में आ जाओ।“
“हा यार! तुम्हारा ग्रुप तो सच में बड़ा है। मस्त है एकदम,” अक्षदा ने कहा।
यह बाते सुनकर गायत्री को दुःख हुआ। अक्षदा को गवाने का उसे डर लगा।
लेकिन अक्षदा ने आगे कहा, “पर मैं ठीक हूं अपनी दोस्त के साथ। और हां ग्रुप बड़ा नहीं दोस्ती बड़ी होनी चाहिए।“
फिर गायत्री को लेकर अक्षदा बाहर चली गई। गायत्री तो बस अक्षदा के तरफ ही देखे जा रही थी।
“अक्षदा ने मुझे अपनी दोस्त कहा। अपनी दोस्त..!” मन ही मन खुद से वह कहने लगी।
खाना खाते हुए अक्षदा ने गायत्री से कहा, “तू इतनी शांत क्यों रहती है? वह लड़की तुझे परेशान करती है क्या?”
गायत्री ने कहा, “हां मुझे वह हमेशा चिढ़ाती रहती है। मेरा मजाक उड़ाती है।“
“गायत्री, सुनो अगर तुम खुद के लिए खड़ी नहीं होगी ना तो दुनिया में कोई भी तुम्हारे लिए खड़ा नहीं होगा। प्रेरणा जैसे लोग तो तुम्हें हर जगह मिलेंगे; टांग खींचने वाले। लेकिन खुद को किसी से कम बिल्कुल भी मत समझना। तुम्हारा अस्तित्व भी मायने रखता है। देखो, प्रत्युत्तर देने में तुझे डर जरूर लगेगा। लेकिन फिर भी हिम्मत कर। तेरे अंदर बहुत दम है, गायत्री। बस खुद के लिए एक कदम उठा और झंडे गाड़ दे,” अक्षदा ने कहा।
“हाँ अक्षदा,” गायत्री ने कहा। और मुस्कुरा दिया।
गायत्री फिर से अपने आप से बाते करने लगी...
“ऐसी हिम्मत अब तक देनेवाला कोई नहीं था। ऐसा लग रहा है स्फूर्ति से भर गई हूं मै। थोड़ा डर तो रही हूं, लेकिन आज तो सच में बोल ही दूंगी।“
ब्रेक खत्म हुआ... क्लास फिर से भर गया...
“गाय, शेळी, म्हैस
गायत्री लय वैस..”
ऐसा मराठी में प्रेरणा का ग्रुप चिल्लाने लगा।
“फटी हुई बैग, टूटी हुई चप्पल और चली मुंह लेके मुझसे कॉम्पिटिशन करने,” प्रेरणा ने कहा।
उसी वक्त अक्षदा ने गायत्री के जांघ पर हाथ रखा और एक स्माइल दी। इस स्पर्श ने गायत्री के कमजोर व्यक्तित्व को एकदम से कुचल दिया।
अपना पूरा आत्मविश्वास जुटाकर गायत्री ने भी मराठी में कहा,
“प्रेरणाचा बाबा आहे जरशी म्हशीचा वेडा
अन् चक्क प्रेरणा आमची सोडलेला रेडा...”
यह सुनकर आसपास वाले सारे बच्चे जोर – जोर से हँसने और चिल्लाने लगे।
प्रेरणा के ग्रुप वाले तो अपने मुंह पर हाथ रखकर खीs खीs करने लगे।
अब गायत्री को थोड़ा अच्छा महसूस हुआ। जो उलटी वह बरसों से करना चाहती थी वह उसने आज कर ही दी।
प्रेरणा को गुस्सा आया। वह उठ गई और गायत्री के पास आकर उसपर हाथ उठाया। लेकिन गायत्री ने उसका हाथ अपने एक हाथ से पकड़ लिया। पूरा क्लास एकदम शांत हो गया।
गायत्री ने कहा, “दूसरों को उतना ही सताओ जितना खुद सह सकते हो। तेरे पिताजी तो एक टीचर है ना? शोभा नहीं देता तुम्हे, प्रेरणा।“
प्रेरणा इतना सुनते ही अपने बेंच पर जाकर बैठ गई। उसका मुंह रोने जैसा हो गया था। उसी वक्त टीचर क्लास के अंदर आ गए और लेक्चर शुरू हो गया।
सब बच्चे हैरान थे। क्योंकि आज पहली बार सब ने गायत्री को ऐसे बात करते हुए देखा था।
स्कूल की छुट्टी हुई...
रवि गायत्री के पास वाले ही बेंच पर बैठता था।
उसने गायत्री से कहा, “तू तो बहुत खतरनाक है, गायत्री। तुम्हारा यह रूप तो मैंने पहली बार देखा। लेकिन अच्छा लगा देखकर।“
यह सुनकर गायत्री को अंदर ही अंदर अच्छा लगा। लेकिन कुछ बोले बिना ही बस मुस्कुराकर वह अक्षदा को लेकर वहां से चली गई।
“क्या गायत्री, तूने उस लड़के के साथ बात क्यों नहीं की? मुझे लगता है वह लड़का तुझे पसंद करता है। मैने अच्छे से निहारा है। क्या मामला है गायत्री?” अक्षदा ने कहा।
गायत्री ने कहा, “मुझे उसने बहुत बार कहा है कि, मैं उसे पसंद हूँ। लेकिन इस विषय पर उसके साथ बात करने की मेरी हिम्मत ही नहीं होती। दूसरी बाते करने के लिए भी मै थोड़ा सहम जाती हूं। क्या बोलूं क्या नहीं कुछ समझ में नहीं आता।“
अक्षदा ने कहा, “अरे गायत्री, इस उम्र में यह आम बात है। पर किसी को ‘हा’ या ‘ना’ के चक्र में बांधकर कभी नहीं रखना चाहिए। लेकिन हमें यह पता नहीं कि, यह खिंचाव है या प्यार। इसलिए इतने जल्दी ‘हां’ तो बिल्कुल भी मत बोलना। उसे तेरे मन की स्थिति बता दें और आजाद हो जा। फिर देखते है वह कैसी प्रतिक्रिया देता है। मेरी इच्छा है कि यह काम तू आज ही कर दे।“
अक्षदा की यह बात सुनकर गायत्री पीछे मुड़कर अपने क्लास में गई।
लड़के और लड़कियां क्लास से बाहर जा रहे थे। रवि और उसके कुछ दोस्त अभी भी वहीं थे।
गायत्री ने रवि को बुलाया। वह अकेला उसके पास आया।
अक्षदा भी उनके पास ही खड़ी थी।
गायत्री ने कहा, “देख रवि तू बहुत अच्छा लड़का है। लेकिन मुझे पढ़ाई पे अपना ध्यान लगाना है। मुझे कुछ बनना है। मेरी हालातों से तू बिल्कुल भी अनजान नहीं है। भविष्य को भविष्य पर छोड़ते है। अभी के लिए हम बस अच्छे दोस्त बनकर रह सकते है।“
रवि ने कहा, “क्या गायत्री, इतनी सी बात कहने के लिए तू इतना डर रही थी? अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे, बस?”
गायत्री और अक्षदा ने थोड़ा सा हंस दिया और वे वहा से चले गए।
अपने अपने रस्ते जाते वक्त अक्षदा ने गायत्री से उसका मोबाइल नंबर लिया।
अक्षदा ने कहा, “कॉल करूंगी मै तुझे, गायत्री।“
गायत्री ने कहा, “अपने पापा के मोबाइल से क्या?”
अक्षदा ने कहा, “अरे नहीं, मेरे पास मेरा खुद का एंड्रॉयड मोबाइल है।“
गायत्री ने कहा, “अरे वा! फिर तो अच्छी बात है। मैं इंतजार करूंगी। बाssय..!”
गायत्री और दादू दोनों घर पहुंचे। गायत्री ने आई के साथ अपना सारा काम निपट लिया।
शाम हुई...
गायत्री अपनी पढ़ाई कर रही थी तो उसी वक्त उसके बाबा दारू पीकर आ गए। दादू तो गहरी नींद में था। खेल कूद से थका हुआ जो था।
गायत्री के बाबा सुनीता के साथ थोड़ा सा तू तू – मैं मैं करने लगे। सामने उनके खाने की थाली थी लेकिन भोजन का सुख नसीब में नहीं था।
सुनीता इन सब बातों से बहुत परेशान हो गई थी। वह अपने पति को ताने मारने लगी। इतने में घर का छोटा मोबाइल बजा। इन सारी बातों को नजरंदाज करके गायत्री घर के बाहर आंगन में जाकर बैठ गई।
फोन पर अक्षदा थी।
अपने घर में चलने वाले रोज के झगड़ों के बारे में गायत्री अक्षदा को बताने लगी।
गायत्री ने कहा, “हमारे बाबा हमारा बहुत खयाल रखते है। वे कभी झगड़े नहीं करते थे; बहुत शांत थे। लेकिन आज कल वे बहुत गुमसुम से रहते है। जैसे उनके पास उज्ज्वल भविष्य की कोई उम्मीद ही ना हो। किसी के साथ जादा बाते भी नहीं करते। घर से बाहर जाते है, बाहर से घर आते है, खाते है, पीते है और सो जाते है।“
गायत्री की इस बात पर अक्षदा ने कहा, “क्या तूने कभी अपने बाबा के साथ अपनी दिल की बाते शेयर की है?’
गायत्री ने कहा, “नहीं..! ऐसा कभी नहीं हुआ कि, हम सब परिवार में एकसाथ बैठे और खुशी से बाते की। मतलब अब बहुत साल बीत गए होगे ऐसा कुछ नहीं हुआ। मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है, अपने दिल की बाते बाबा के साथ बांटने के लिए। मेरा दिल उस हालत में भी नहीं है।“
अक्षदा ने कहा, “तुम्हारे पिताजी पहले अच्छे थे। लेकिन अब वह गुमसुम से रहने लगे और शराब भी पीने लगे। इसका मतलब वह खुद को अकेला महसूस कर रहे है। उन्हें लग रहा होगा कि, उनके वजूद के अब कोई मायने नहीं है। तो आज अपना कदम उठा और अपने बाबा से बात कर। मुझे पता है यह बहुत मुश्किल होता है। कुछ लोग कायनात मुट्ठी में करने निकलते है; लेकिन अपने परिवार से हार जाते है। परिवार बहुत अनमोल होता है; कभी टूटने मत दो उसे। परिवार का हर एक किरदार अपनी जगह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संतुलन बनाना जरूरी है। तू आज कुछ नहीं करेगी तो कल कुछ करने के लिए नहीं रहेगा, इतना याद रखना,” अक्षदा ने कहा।
दो पल की शांति के बाद गायत्री ने कहा, “ठीक है अक्षदा, मै आज कुछ तो करती ही हूं।“ और उसने लंबी सांस छोड़ी। “थोड़ी देर बाद मैं तुझे फिर से कॉल करती हूं।“ और गायत्री ने फोन रख दिया।
वह घर में चली गई और अपने बाबा के साथ खाने पर बैठी गई; बरसों बाद।
अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर गायत्री ने अपने बाबा से कहा, “बाबा, आपको क्या लगता है इस साल स्कूल में मेरा क्रमांक आयेगा क्या?”
बाबा ने कहा, “गायत्री तेरा क्रमांक जरूर आयेगा। मुझे पूरा भरोसा है। तू भविष्य में बहुत आगे निकल जाएगी, देखना।“
गायत्री ने कहा, “बाबा, मै नहीं जा सकती।“
“ऐसा क्यों कह रही है, गायत्री?” बाबा ने पूछा।
“क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि, मेरा परिवार बिखर रहा है। मेरी आँखें इसे नहीं देख पा रही है। मेरे प्राण को यह बाते असहनीय हो रही है,” गायत्री ने कहा। उसके और सुनीता की आंखों में आंसू थे।
बाबा तो चुपचाप मूर्ति जैसे बस देखे जा रहे थे। उन्हें क्या कहे कुछ भी नहीं सूझ रहा था।
गायत्री ने फिर से कहा, “मेरा परिवार मेरी ताकत है। बाबा जब आप शराब पीकर आते हो तब हमें बहुत बुरा लगता है। आपको ऐसा मत महसूस होने दो की, हम आपसे प्यार नहीं करते। या फिर आपके कोई मायने नहीं है। हम सब आपको बहुत चाहते है। देखना, एक दिन हम इस गरीबी से जरूर उभर जाएंगे। मैं हूं ना..!”
गायत्री की बातों से उसके बाबा की आँखें भर आई थी। आंखों का पानी निवाले में मिलने लगा था। अपनी थाली को एक बाजू ढकेलकर उन्होंने जोर से अपने बेटी को गले लगाया।
इस स्पर्श के लिए तो गायत्री कितने सालों से तरस गई थी। उसके सारे दर्द और अपेक्षाओं की समाप्ति हो गई। उसके गहरे जख्म एक पल में भर गए।
बिस्तर पर लेटे दादू की गर्दन और तकिया भी गिले हो गए थे। क्योंकि वह भी सारी बाते सुन रहा था। दिल में उसके भी खालीपन था।
“मेरी बच्ची! मुझे माफ कर दो। सुनीता, तू भी मुझे माफ कर दे। मै शराब छोड़ दूंगा। मै अपने परिवार के, अपने बच्ची के साथ मजबूती से खड़ा हुं। हां मै खड़ा हूं,” रोते हुए बाबा ने कहा। “गायत्री, अब तू पेट भर खाना खा।“
और वे अपनी आँखें पोंछते हुए खाना खाने लगे।
सबका खाना हो गया और गायत्री घर का मोबाइल लेकर बाहर आंगन में चली गई और उसने अक्षदा को फोन किया।
खुशी से सुबकते हुए गायत्री ने कहा, “अक्षदा..! सब ठीक हो गया। तुझे पता है, मेरे बाबा ने आज मुझे गले लगाया। ऐसा लग रहा था जैसे मैं इस दुनिया के सारे धन संपत्ति की मालकिन बन गई हूं। यह सब तेरी वजह से हुआ मेरी दोस्त। तू नहीं होती तो मैं खुद के लिए कभी खड़ा नहीं हो पाती। तेरे बस एक दिन के आने ने मेरा सालों रखड़ा जीवन सही हो गया।“
अक्षदा ने कहा, “तुझे पता है गायत्री, तेरा मन बहुत जटिल है। इसलिए तेरी जिंदगी भी जटिल बनती जा रही थी। लेकिन अब देख सब आसान होते जा रहा है।“
“हा अक्षदा, लेकिन अभी भी एक समस्या है। एक बात है जो मुझे कांटे की तरह हररोज चुभती है। मैं बस तुझे ही बता रही हूं,” गायत्री ने कहा।
“गायत्री तू सिर्फ बोल। हम उसपर कुछ तो उपाय निकालेंगे,” अक्षदा ने कहा।
गायत्री ने कहा, “अक्षदा, बचपन से मेरे चाचा से मेरा शोषण हो रहा है।“ और वह रोने लगी।
यह सुनते ही अक्षदा के होश उड़ गए। उसे बहुत बुरा लगा। सारी बाते उसके सामने अब साफ होने लगी: आखिर क्यों गायत्री ऐसी बन गई है; एकदम शांत, डरी हुई, खुद को अकेला रखने वाली, कोई निर्णय लेने में हिचकिचाहट और आत्मविश्वास की कमी।
अक्षदा ने कहा, “क्या बोल रही है गायत्री तू? तूने यह बात अभी तक किसी को सच में नहीं बताई?”
“नहीं अक्षदा! मुझे किसी को कुछ बताया ही नहीं जाता। अलग अलग बहाना करके वे मुझे छूने की कोशिश करते है। पिछले कई सालों से मैं ट्रॉमा से गुजरी हूं। लेकिन फिर भी मै खुश रहने की कोशिश करती हूं। अब बस मुझे इसके बारे में कुछ तो करना है। मुझे यह खत्म करना है,” गायत्री ने कहा।
“गायत्री, तू फिक्र मत कर। हम कुछ करेंगे,” गंभीरता से अक्षदा ने कहा। थोड़ा रुकने के बाद, “यह बहुत ही बुरी और गंभीर बात है। इसपर हमें जरूर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। सोमवार के दिन हम स्कूल में मिलते है, फिर इसपर बात करते है। मैं तुझे एक आइडिया देती हूं। और हां तू फिक्र मत कर यार तेरी दोस्त अक्षदा है तेरे साथ,” अक्षदा ने कहा।
“नहीं करूंगी मैं फिक्र। थैंक यू!! तू अब आराम कर। मैं भी सोने जाती हूं। बाय!” गायत्री ने कहा। और फोन रखकर वह सोने चली गई।
सोमवार का दिन आया...
गायत्री और अक्षदा स्कूल में मिले। उन्होंने इस बात पर चर्चा की और अक्षदा ने गायत्री को एक आइडिया बताई।
शाम को स्कूल छूटने के बाद गायत्री अपने घर आई। गायत्री की मां खेत पर गई हुई थी। दादू ने अपने स्कूल की बैग फेंक दी और बिना कपड़े बदले ही खेलने के लिए दौड़ लगाई। गायत्री अपने कपड़े बदलकर घर के काम में जुट गई। वह इस बात पर पक्की थी कि उसके चाचा घर में जरूर आयेंगे। और सच में उसी वक्त चाचा आ गए।
उसके साथ थोड़ी पूछताछ करके वह उसे पकड़ने लगे।
गायत्री ने कहा, “चाचा जी नहीं।“ उसका मुंह उतर गया।
लेकिन फिर भी चाचा कुछ भी नहीं सुन रहे थे।
इन सब के दौरान गायत्री हर बार की तरह तेजी से घर के बाहर भाग गई। लेकिन चिल्लाने की या किसी को बताने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी।
थोड़ी देर बाद चाचा जी घर के बाहर चले गए।
दूसरे दिन गायत्री स्कूल में गई। अक्षदा तो उसके पहले ही उसका इंतजार कर रही थी।
अक्षदा ने कहा, “गायत्री, काम हुआ?”
गायत्री ने कहा, “हां अक्षदा।“
“तो कहा है मेरा मोबाइल?” ऐसा कहते हुए अक्षदा ने अपना एंड्रॉयड मोबाइल गायत्री से ले लिया।
“तूने सब ठीक से रिकॉर्ड किया ना?” वीडियो को चेक करते हुए अक्षदा ने पूछा।
“हां अक्षदा। एक बार देख लो,” गायत्री ने कहा।
जब गायत्री के चाचा घर में आने वाले थे, उसके पहले ही गायत्री ने टेबल पर पड़े कपड़ों में वीडियो रिकॉर्डिंग ऑन करके मोबाइल रख दिया था।
सबूतों के लिए यह अक्षदा की आइडिया थी।
वीडियो लेकर वे दोनों प्रिंसिपल केबिन में गए।
तत्काल ही वे पुलिस स्टेशन गए।
पुलिस ने इन सारी बातों पर गौर किया और तुरंत ही गायत्री के चाचा के घर के लिए निकल पड़े। उसके चाचा को हिरासत में लेने के बाद, प्रिंसिपल सर और पुलिस गायत्री के आई – बाबा से मिले।
उन्होंने उनसे वार्ता लाभ करके बातों की गंभीरता और गहराई समझाई। गायत्री के बाबा और आई का हृदय पूरी तरह से टूट गया। वह रोने लगे।
लेकिन सांत्वना देते हुए गायत्री ने कहा, “आई – बाबा सब कुछ ठीक है। मुझे कुछ नहीं हुआ है।“
आई – बाबा ने खुद को संवारने के कोशिश की।
प्रिंसिपल सर ने स्कूल में सारे अध्यापकों से इस मुद्दे पर चर्चा करके ‘अच्छा स्पर्श और बुरा स्पर्श’ जैसी अलग अलग शिक्षा को अमल में लाने का और पेरेंट्स को भी इसमें शामिल करने का निर्णय लिया। ताकि लड़के, लड़कियां और समाज ऐसे मुद्दों के लिए जागरूक हो।
शोषण बस लड़कियों का ही नहीं बल्कि लड़कों का भी होता है। चाहे वह मानसिक हो, शारीरिक हो या लैंगिक।
दसवीं की छुट्टियों में गायत्री ने एक छोटी किताब लिखी। जिसमें उसने अपनी इन सारी घटनाओं को छापा और किताब को नाम दिया :
“अक्षदा, मेरी दोस्त..!”
By Kishor Ramchandra Danake
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