By Sparshjeet Singh
लम्बी सी इस अंजान डगर को काटन से भरा पाया है,
ना जाने क्यों हर मोड़ पर अँधेरा ही मैंने पाया है|
जीवन में जैसे कोई दुखों की चादर पाई है,
हर लम्हे मुझे घेर रही एक अजीब सी तन्हाई है।
मुँह फेर रही थी मुझसे वो हर चीज़ जिसका मुझे दिल ओ जान से चाह थी,
ना जाने कैसी बदनसीब वो सुनसां अकेली राह थी कहता हूं मैं
लड़खड़ाते कदमों से ये डार्कहास्ट की वो कुछ मील और चल जाएं,
क्या पता अगले छोराये पर हमारी उजाले से
मुलाकात हो जाये
मीलों की इस खामोशी से अब मन ऊब सा चुका है, चला तो जा रहा है पर दिल ही जाने की राह में कितनी दफ़ा रुका है
By Sparshjeet Singh
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