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Noted Nest

Mann

Updated: Dec 16, 2024

By Harsh Raj



मन है मदमस्त एक शराबी की तरह,

होश नहीं खुद का फिर भी वो चल पड़ा,

उस राह पे जिसकी मंज़िल उसे न पता,

बेखबर ज़माने से न जाने किस खोज में लगा।


झूठे सपने रोज़ वो सजाता है,

फिर उनकी तलाश में वो निकल जाता है,

वापस जब रात को आता है,

फिर नया जाल सपनों का वो बुनता है।


क्या इस अहमक को कभी अक्ल आएगी?

या यूँ ही बेहोशी में उम्र गुज़र जाएगी ?

फिर एक शाम वो रात आएगी,

जिस रात का कभी दिन न होगा,

दिल तो होगा पर जान न होगी,

बेजान दिल किस काम का होगा?


इलाज है कोई, इसकी कोई दवा तो होगी?

या ये कोई कैद है जिससे रिहाई न होगी?

जब आएगी मौत तब दिल तो होगा,

पर जान न होगी,

पर होंगे पर उड़ान न होगी।


पर तुझमें जान अभी काफी है,

अभी तो पूरी ज़िन्दगी बाकी है,

तू एक और जाम लगा,

झूठा ही सही, एक और सपना सजा,

कल फिर सुबह तुझे जाना है,

यही तो तेरे जीने का बहाना है।


पैमाना ख्वाहिशों का,

आए ख्वाबों के साक़ी भर,

मदमस्त होने दे मुझे,

अभी नहीं जाना मुझे घर।


जहां न मिले मुझे यही ठीक,

वरना ज़िन्दगी का जाम कैसे लगाऊंगा?

जो पूरी हो गई मेरी सारी ख्वाहिशें,

तो मैं सपने कैसे सजाऊंगा?

जिंदा रहने के बहाने ही सही,

मन तू मदमस्त ही रह अभी।


By Harsh Raj



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