By Akhilesh Dwivedi
तुम एक बार हाथ थाम कर देखो मेरा
फिर मैं बताऊं कि तुम क्या हो मेरे लिए,
तुम मेरे लिए पंक्षियों की सुबह हो
जुगनुओं की रात हो तुम।।
तुम मेरे लिए टिमटिमाते तारों की बारात हो
आकाश-गंगा की श्वेत धारा हो तुम,
असमान में उड़ता हुआ पुच्छल सितारा हो तुम
उत्तर में चमकता ध्रुव तारा हो तुम।।
तुम मेरे लिए गंगा का गोमुख हो
तो प्रयागराज का संगम भी हो तुम,
तुम काशी की संध्या आरती जैसी
सबसे मनमोहक समागम भी हो तुम।।
तुम मेरे लिए लहलहाते हरे भरे खेत सी हो
तुम सूरजमुखी का बगान भी हो।
दिन ढ़लते जो सूरज दिखलाता है
वो खुबसूरत मुस्कान हो तुम।।
तुम एक बार हाथ थाम कर देखो मेरा
फिर मैं बताऊं कि तुम क्या हो मेरे लिए।।
By Akhilesh Dwivedi
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